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________________ 60 याधुनिक विज्ञान और अहिंसा और शक्ति उसने प्राप्त कर ली है। प्रणु द्वारा उद्जन बम और राकेट चालित प्रक्षेपणास्त्र भी बना लिए है। उनके अतिरिक्त कई छोटे-बड़े विध्वसक उपकरण भी तैयार किये, जिनका ग्रन्तर्भाव प्रणुशक्ति शोध में हो जाता है | यह मत्र विजिगीपा का ही परिणाम है । 1 परमाणु शक्ति और परमाणु बम के सम्बन्ध में उच्च कोटि के वैज्ञानिको में ही नहीं, अपितु सामान्य जन समाज में भी वडी चर्चा है । मभी यह मानते है कि यह एक भयकर हथियार है। यह बम जब नहीं बना था उसके पहले ग्रर्थात् तेरहवी शताब्दी में लकड़ी, तेल, कोयला आदि पदार्थों द्वारा शस्त्रोपयोग पद्धति का प्रचलन था, पर परमाणु शक्ति ने सबको परास्त कर सर्वोच्च शिखर पर अपना स्थान प्रतिष्ठापित किया है। ऋणु इतनी छोटी इकाई है कि जिसे दो भागो मे विभक्त नही किया जा सकता । श्रणुवम अत्यन्त सूक्ष्म श्रणुत्रो का संग्रह मात्र है जिसका सूर्य बनता है । इलेक्ट्रॉन और न्यूट्रॉन के विभक्त करने पर शक्ति और प्रकाश खीचा जा सकता है । परमाणु के बाहरी भाग मे इलेक्ट्रॉन तीव्र गति से चक्कर काटते हुए किसी भी समीप आने वाले पर पदार्थ को धक्का देकर बाहर कर देते है । उनसे बहुत दूर परमाणु के गर्भ मे नाभिकण हे जो प्रोटोन और न्यूट्रॉन से वना है। इलेक्ट्रॉन यदि ॠण विद्युत् है तो प्रोटोन धन विद्युत्, और न्यूट्रॉन न धन विजली हे न ऋण बिजली । न्यूट्रॉन और प्रोटोन की भूत मात्रा प्रायः समान है । प्रथम परमाणु हाइड्रोजन सबसे छोटा और बनावट में सरल अर्थात् उसे बाहर पहरा देने के लिए सिर्फ एक इलेक्ट्रॉन और गर्भ मे प्रोटोन होता है । विशेप हाइड्रोजन दो और तीन प्रोटोन वाले भी होते हैं हाइड्रोजन के बाद प्रगला परमाणु हीलियम है, जिसके बाहर दो इलेक्ट्रॉन और गर्भ मे दो प्रोटोन होते है । इसकी भूत मात्रा चार है । इस भारीपन का कारण इसके गर्भ मे अवस्थित दो न्यूट्रोन हैं । सवसे हल्की धातु लीथियम के भीतर तीन वन विजली (Proton) हे, लेकिन उसकी भूत मात्रा सात है— वाकी चार भूत मात्रा चार न्यूट्रॉनों के कारण है । यह तो ज्ञात ही है कि एक प्रोटोन की भूत मात्रा इलेक्ट्रॉन से ग्रठारह सौ गुनी होती है । नाभिकण की शक्ति पार है । यद्यपि वैज्ञानिक इससे परिचित तो थे पर इसकी प्राप्ति के साधन अज्ञात थे । सन् 1930 मे चडविक ने न्यूट्रोन
SR No.010855
Book TitleAadhunik Vigyan Aur Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshmuni, Kantisagar, Sarvoday Sat Nemichandra
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1962
Total Pages153
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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