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________________ बारह धर्म और विज्ञान "पाश्चर्य पूर्ण विश्व सबसे सुन्दर है। ऐसा अनुभव होता है। सच्ची कला का और विज्ञान का वही उद्गम स्थान है। जिसके मन में इस भावना का उदय नहीं होता, जिसे चमत्कार और विस्मय मालूम नही होता, कहना चाहिए कि उसके नेत्र हमेशा के लिए फूट गये, वह मर गया । इस दृष्टि से केवल मै धार्मिक हूँ।" -आइन्स्टाइन धर्म आत्म सम्वद्ध होते हुए भी समाजमूलक वस्तु के रूप मे शताब्दियों से जन जीवन मे प्रतिप्ठित रहा है । विज्ञान का भौतिक जगत् से सम्बद्ध होते हुए भी धर्म के क्षेत्र में इसका प्रभाव रहा है । धर्म की वास्तविक अभिव्यक्ति आचारमूलक परम्परालो मे निहित है जो समाज की नैतिक सम्पत्ति है। उच्चतम प्राचार और विचारो द्वारा वासना क्षय ही धर्म का एक सोपान है। प्राचार विपयक परिस्थितियाँ परिवर्तित होती रहती है-उसका मुख्य कारण विज्ञान है । विज्ञान ने धर्म के वाह्य स्वरूप के अन्वेषण मे जो क्रातिकारी रूप दिया है-वह मानव गास्त्र और समाज शास्त्र की दृष्टि से अनुपम है। पुरातन काल मे, वर्तमान अर्थ मे प्रयुक्त विज्ञान गब्द सार्थक न रहा हो, पर जहाँ तक इसकी भावमूलक परम्परा का प्रश्न है, इसका नकट्य स्पष्ट है । समाजमूलक क्रातियो का जो धर्म पर प्रभाव पड़ा है और जो अपेक्षित संगोधन भी करने पड़े है यह सब कुछ विज्ञान की ही मौलिक देन है, क्योकि विशुद्ध आध्यात्मिक दृष्टि से जीवन यापन करने वालोका अस्तित्व भीभौतिक जगत् पर ही निर्भर रहता आया है अत समाज से वद्ध वैज्ञानिक प्रयोगो को भी धर्म द्वारा समर्थन मिला है। जव हम ज्ञान की विशेष स्थिति को विज्ञान के रूप मे अगीकार करते है तो स्वत स्पष्ट हो जाता है कि विज्ञान भी आत्मा का एक मौलिक गण है। उपनिषद। मे 'एक से अनेक की ओर
SR No.010855
Book TitleAadhunik Vigyan Aur Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshmuni, Kantisagar, Sarvoday Sat Nemichandra
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1962
Total Pages153
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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