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________________ घम का स्वम्प 37 बहुत सुन्दर, मक्षिप्त मौर मारगर्भित व्यास्या करते हुए "वत्यु सहावी धम्मो " वस्तु के स्वभार वो ही धर्म नहीं है । प्रत्येक पदाथ या वस्तु वा अपना निज स्वभाव होता है और वह स्वभाव ही उसका मूल धम है । उदाहरणाय गीततत्व जल का भूल घम है, अग्नि वा उष्णल | श्राघ्या मिव दप्टि में आत्मभाव में रहना आत्मा का मूल धम है। पुदगनो के विकारो में रमण करना प्रथम है । श्रर्थात् मागारिक वृत्तियों में लीन रहपर लिाग और वभव वो ही जीवन का अन्तिम लक्ष्य मानवर जीवन व्यतीत करना तात्त्विक दृष्टि में प्रथम ही है । परिग्रह मात्र का पोषण धम यी चोटि म नही श्राता, क्योकि इससे हिंसा वृत्ति प्रोत्साहित होती है । परवर्ती जैनाचार्यों ने सममामयिक परिस्थिति के अनुसार धर्म की प्रास्त व्यास्याएँ एवं उसे जीवन वे दनिय श्रम में किस प्रकार आचार म लाया जा गरता है? समाज भौर नीति से इसका क्या सम्बाध है श्रादि अनक निपयो वा सारगर्भित विवेचन कर धर्म वा अधिर लोग भाग्य बनाने का अनु वरणीय प्रयास किया है। परवर्ती श्राचार्यों की व्यास्याएँ मौनिक रूप म उपयुक्त सूचित सिद्धान्त का ही अनुगमन करती हैं। धम वा प्रादुर्भाव धर्म समाज का अत्यावश्यष भग रहा है। इसकी उत्पत्तिका आदिरात एतिहासिक ष्टि से बना है। समाज विज्ञान की दृष्टि से जब मे मानव या अस्तित्व है तभी से धम का भी मस्तित्व स्वीकार करना होगा। मार मे किसी भी कोने में निर्मित या अनिश्रित मानव या भम्भनत पाई भी मग एगा न होगा जिसका अपना कोई धर्म न हो। घमहीन समाज मे जीवन समुना नही रह गरना, पाह वह विचारमूनर हो या माचाग्यूलर | यद्यपि यह स्थान धम या ऐतिहामि ममीशा मा नहीं है, प्रमिय विषाम वे पर चरण पर गम्भीर विचार करो पाही है. यहां प्रागिन गत मे ही मतोष करना होगा, क्योकि धम र श्रद्धा प्राह्म तत्व है। भा अब दम पर हासित दृष्टि से विचार दिया जाना है तो श्रद्धा यो स्वभा पाटपहुंची है। पर विचार धारा जय गवाज में मानी है तब पुरा विविध परम्परानुयायी उपाय मोर र समभ गते हैं। देवता है "विशेष प्रकार के विचारों में गश्यम
SR No.010855
Book TitleAadhunik Vigyan Aur Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshmuni, Kantisagar, Sarvoday Sat Nemichandra
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1962
Total Pages153
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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