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________________ दशन और विनान दाकाएँ चला करती थी। प्रथम शका यह थी कि गुरत्वारपण यदि शक्ति है तो उसके मित्रमण करने में कुछ भी समय क्यो नहीं लगता, जसे प्रकाश को लगता है। दूसरी यह है कि कोई भी प्रावरण गुरुवारपण के माग म अवरोध क्यो नही डालता है। प्राइस्टाहाने बताया कि गुरुत्वावपण गपित नहीं है। पिण्ड एक दूसरे की ओर इमलिए खिचे दीखते हैं कि हम जिस विश्व में अवस्थित हैं यह यूक्लिट के नियमा से परे का विश्व है। विश्व को चार पायामा से सयुक्त मानने पर प्रत्येक द्रव्य के पास बुधवाना होगी। इसी को हम गुरुत्वारपण समझत पाये हैं । इस प्रकार गुरुत्वाक्पण को आइन्स्टाइन ने देश और काल का गुण स्वीकार किया है।" वास्तव में देखा जाय तो यह उस पग्भ्रिमणशील वेगवती वस्तु का ही एप विशिष्ट गुण है । इमरा आन्तरिक रहस्य न जानन के कारण ही लोग उसे नावपण की वस्तु समभकर आश्चय प्रकट करते हैं, पर यह सत्य नही है। जो सिद्धात एक दिन विश्व म इतना ऊहापोह कराया था, आज उसमा उफान बिलकुल शात है । और भी बतलाया जाता है कि "एक दिन पदाथ का अन्तिम अविभाज्य प्रा अणु माना जाता था और लोग उमे मिलकुल ठोस समझते थे । फिर जव परमाणु का पता चला तब विनान उसी को ठोस मानने लगा। किन्तु अाज परमाणु ठोस नही, पोला माना जाता है, जिसके नाभिक (यूक्लियस) के चारो ओर इलक्ट्रोन और प्रोटोन नाच रहे हैं । परमाणु इतो पोले माने जाते हैं कि वज्ञानियों का यह अनुमान है कि यदि एक भरे पूरे मनुष्य को इस सन्नी से दवा दिया जाय वि उसबै प्रग का एक भी परमाणु पाला न रहे तो उसकी देह सिमटकर एक ऐमे विदु मे समा जायगी जो आँसो मे शायद ही दिखाई पडे।" बनावि जगत में हमारा ऐसे उदाहरण भरे पड़े है जिसकी एक लम्बीचोटी सूची तयार हो सकती है। इन बदलते हुए निणयो के कारण ही विनान का सत्य रादा मदिग्ध रहा है । एक बात यह है कि दिनान ने जिस बात के लिए कभी सोचा नहीं, खोज नहीं कि, अथवा जो विनान के वातावरण म विज्ञान सम्मत नहीं है उसे क्लानिन असत्य पहबर ठुकरा देते हैं जो 1 भानोदय का विधान अक 2 (1959) नवम्बर, 'न्यूटन से आगे आधुनिक भौतिक विज्ञान व विकास की दिशाएँ । निषध, पृ. न.91
SR No.010855
Book TitleAadhunik Vigyan Aur Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshmuni, Kantisagar, Sarvoday Sat Nemichandra
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1962
Total Pages153
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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