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________________ सात दर्शन और विज्ञान श्राज इस भौतिकतावाद के चकाचौंध मे पानवाले व्यक्तिया की प्रास्था दर्शन के प्रति जितनी नहीं है, वही उससे अधिक विज्ञान के प्रति है | इसका मूल कारण मानव का श्रापण मदा बाह्य जगत् की चार रहता है, श्रया मिक्ता की श्रीर बहुत कम । दीर्घ-दृष्टि से चिन्तन करने पर यह स्पष्ट है विदशन श्रीर विज्ञान वा अनिम साध्य प्रगत एक है। वे दोना सत्य के द्वार तक पहुँचने म पूण सहायक हैं। एक ज्ञानयक्ति द्वारा उन सत्य-तथ्यो तन पहुँचान वा प्रयाग करता है तो दूमरा प्रयोग गक्ति के आधार पर । दान चिन्तन प्रधान है, मस्तिप्य की वस्तु है । अत यह मत्य के सही तथ्य का उद्घाटा स्थूल रूप में जनसमाज के सम्मुस रवन में सक्षम नहीं है और यह नान यी वस्तु होने के कारण स्थूत रूप म रमा भी तो नहीं जा सकता, किन्तु, विधान वा काय उन तथ्यों का सही-सही प्रयोग द्वारा स्थून रूप म है | यह नमो वस्तु वो गोपनीय न रखकर क्षपणको भांति जन समाज के सम्मुन स्पष्ट रस देना चाहता है । एतदय विज्ञान जन मानस वो तिना अपनी ओर आकर्षित कर मरता है उतना दशन नहीं । दान श्रात्मतत्त्व प्रधान है और विमान भौतिक गति प्रधान है। दान श्रात्मा, परमात्मा पर गम्भीर चित्तन प्रदान करता है और विमान बाह्य तत्व पर अपने मोति विचार अभिव्यक्त करता है। दान विद एक गम्पूर्ण तत्व समभवर उमा परिमान कराता है और विमान जगत् वे पृथक-पृथर पहनुमा वा भिन्न भिन्न दिग्दान कराता है। इस दृष्टि से दान क्षेत्र विमान में बहुत व्यापर व विस्ता प्रतीत होता है । दनमान वैश्रमित हुँने का प्रयास करता है पर वकी हृदय जगत् तर ही सीमित है। दा युति और अनुमन पो महत्व है, तो वार युक्ति वो दुरावर वेवन धनु वा ही प्रधा
SR No.010855
Book TitleAadhunik Vigyan Aur Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshmuni, Kantisagar, Sarvoday Sat Nemichandra
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1962
Total Pages153
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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