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________________ याधुनिक विज्ञान और हिंसा लेकिन यह विश्वास करने का कोई कारण नहीं है कि प्रत्येक पक्ष मदा सर्वदा पचनिर्णय को स्वीकार कर ही लेगा । जब ऐसी स्थिति मामने ग्राए तो पचनिर्णय से श्रागे का कदम उठाना होगा और वह होगा सत्याग्रहप्रयोग और शुद्धि प्रयोग । 156 जब किसी विचार धारा का सामूहिक रूप से प्रचार करके उसे क्रियान्वित कराना होता है प्रथवा किसी पर ग्रन्याय प्रत्याचार करके कोई व्यक्ति मव्यस्थ के निर्णय को स्वीकार करने को तैयार नही होता है, तव हिंसक शुद्धि प्रयोग अनिवार्य हो जाता है । ग्रमिक शुद्धि-प्रयोग की अनिवार्य शर्त यह है कि दोषी व्यक्ति के प्रति किसी प्रकार का द्वेष, क्रोध या उसे नीचे दिखाने का ग्राशय न हो । केवल उसकी ग्रात्मा पर आये हुए स्वायं के प्रावरणों को दूर करने के पुनीत हेतु से, उसके हृदय को निर्मल बनाने के लिए, उसकी अन्तरात्मा के साथ अपनी ग्रात्मा का सम्बन्ध स्थापित करने के लिए और इस प्रकार उसके विवेक को जागृत करने की पवित्र और शुद्ध भावना से 'श्रात्मवत् सर्वभूतेषु' की दृष्टि से स्वय, तप, त्याग, करना चाहिए । वातावरण को जगाने के लिए सहायक उपवासियो के द्वारा भी उपवास किया जाता है तथा प्रार्थना, घुन, प्रवचन, प्रभातफेरी ग्रादि उपायो द्वारा भी समाज का ध्यान उक्त विचारधारा या वस्तु की ओर केन्द्रित किया जाता है । समाज के बहुभाग जनो की सहानुभूति उस विचार के पक्ष मे जागृत करनी होती है, तव दोषी व्यक्ति, समूह या समाज का हृदय हिल उठता है । उसके हृदय में न्याय सगत विचार उत्पन्न होता है, उसका विवेक ग्रगडाई लेता है और वह न्याय्य पथ पर या जाता है । गाधी युगीन विज्ञों ने सत्याग्रह के चार विभाग किये हैं- ( १ ) सविनय असहयोग, (२) सविनय कानून भग, (३) पिर्केटिंग और (४) वैयक्तिक उपवास । गाधीजी ने ब्रिटिश शासन काल मे सत्याग्रह - का कई वार प्रयोग किया और सफलता भी प्राप्त की । उस समय विदेशी राज्य था और कानून के निर्माण मे जनता की सम्मति नही ली जाती थी । इस कारण कानून-भंग भी न्यायसंगत था, लेकिन आज भारत मे लोकतत्रीय राज्य है और प्रजा के बहुमत के आधार पर कानून वनाये जाते है, अतएव अव सत्याग्रह में कानून भग को स्थान नही दिया जा सकता ।
SR No.010855
Book TitleAadhunik Vigyan Aur Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshmuni, Kantisagar, Sarvoday Sat Nemichandra
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1962
Total Pages153
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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