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________________ तोस विज्ञान को संधि हिंसा के साथ जीवन के किसी भी क्षेत्र में विकास करने के लिए गम्भीर चिन्तन या मार्ग मे आने वाली बाधाओ का सूक्ष्म परिज्ञान अनिवार्य है। दूरदर्शिता, पूर्ण प्रगति मानव को स्थायी जगत की ओर प्राकृप्ट करती है । आज का मानव विना किसी गम्भीर परिणाम पर गम्भीर विचार किये ही दो टूक निर्णय चाहता है । विश्व - गाति की निप्पत्ति के लिए भी यही मार्ग अपनाया प्रतीत होता है। तभी तो हिंसा के सहारे आज विज्ञान पनप रहा है । इस प्रकार की विश्व शाति को यदि ' श्मशान की गांति' की सजा दी जाय तो अत्युक्ति न होगी और इस हिंसा संयुक्त विज्ञान की संहार लीला देखकर सहसा भस्मासुर का ग्राख्यान मानस पटल पर अंकित हो जाता है । यह ग्रनुभव मूलक सत्य है कि ससार मे पारस्परिक वैमनस्य बढाने वाले शत्रुग्रो में सबसे बड़ा और निकट का शत्रु सजातीय ही होता है । मानव समाज के लिए भयकर विनाग का यदि भय है तो और किन्ही प्राणियों से न होकर अपने सजातीय वन्धुत्रो से ही है। मानव की स्वार्थलिप्त हिंसा वृति ने विगत युद्धो मे जिस सहार लीला का प्रदर्शन किया है उससे कैसे आशा की जाय कि वह विश्वशाति के जनक या मानव परित्राता का स्थान ग्रहण करेगी। इसमे भी कहना चाहिए कि शस्त्रो की अपेक्षा मनुष्य की हिंसा वृत्ति ही प्रधान है | स्वार्थान्ध राष्ट्र प्राणियो की कोमलता का अनुभव नहीं कर सकते । मानवीय सौन्दर्य की व्यापकता पर उनका ध्यान नही जाता । वे तो केवल विश्व को अपनी प्रचण्ड संहार-शक्ति के द्वारा या पाश्विक शक्ति द्वारा प्रभावित करना चाहते हैं कि यदि हमारा सर्वागीण श्राधिपत्य स्वीकार नही किया तो उनका जीवित रहने का अधिकार हम छीन लेंगे । " एक वार कतिपय अंग्रेज चिड़ियाघर देखने गये, वहाँ सिंह और भेड़िए श्रादि गुर्राते, दहाड़ते नजर आये। उनकी इस प्रकृति पर अंग्रेजो
SR No.010855
Book TitleAadhunik Vigyan Aur Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshmuni, Kantisagar, Sarvoday Sat Nemichandra
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1962
Total Pages153
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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