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________________ माधुनिक भारत के सुकरात देवत्व का सिद्धान्त है । उन्होने स्वयं पूर्ण दर्शन की स्थापना की है, जिसके द्वारा मनुप्य आत्म-ज्ञान के अन्तिम लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं। अणुव्रत उनके व्यावहारिक दर्शन का नाम है मौर वह आज के अणु-युग के सर्वथा उपयुवत है। प्रण शब्द का अर्थ होता है-छोटा और व्रत शब्द का अर्थ है-स्वयं स्वीकृत अनुशासन । जैमिनी के अनुसार व्रत एक मनो व्यापार है, बाह्य कर्म नही । प्ररण भौतिक पदार्थ का सूक्ष्मातिसूक्ष्म भाग होता है । प्राधुनिक विज्ञान ने यह सिद्ध कर दिया है कि एक भौतिक प्रणु मे अनन्त शक्ति छिपी हुई है । त्रिसूत्री उपाय प्राचार्य तुलसी ने इस वैज्ञानिक सत्य का मनुष्य के नैतिक और आध्या. मिक प्रयास के क्षेत्र में प्रयोग किया है । उन्होने यह पता लगाया है कि छोटेसे-छोटा स्वय स्वीकृत भनुशासन मनुष्य की हीन प्रकृति को मामूल बदल सकता है। मनुष्य को प्रान्तरिक प्रकृति को परिष्कृत करने के लिए दिखाऊ त्याग करने अथवा भक्तिपूर्ण कार्यों का प्रदर्शन करने की आवश्यकता नहीं होती। यह उपाय त्रिमूत्री है : १. गहरी व्याकुलता, २. प्रसदिग्ध सकल्प और ३. एकान्त निष्ठा। १. हम में पात्म-विकास को गहरी व्याकुलता उत्पन्न होनी चाहिए। हम बाहरी वस्तुमो पोर वातावरण मे बहुत अधिक व्यस्त रहते हैं। हमको अपनी अन्तरात्मा को नवीन विशालता को पहचानना चाहिए। फासीसी यथार्थवादी लेखक सरतरे ने इस व्याकुलता को ही वेदना का नाम दिया है । व्याकुलता की यह भावना इतनी तीव्र होनी चाहिए कि हर क्षण वेचनी पोर व्यग्रता अनुभव हो। २. माध्यात्मिक प्रगति के लिए स्पष्ट सुनिश्चित संकल्प मत्यन्त प्रावश्यक है। इन दिनों किनारे पर रहने का फैशन चल पड़ा है। लोग कहते हैं, हम न इस तरफ हैं, न उस तरफ । राजनीति मे यह उचित हो सकता है, किन्तु भाध्या. त्मिक क्षेत्र मे तटस्थता का प्रथं जाता होता है । तटस्थता की भावना भय का चिह्न होती है। यदि हममें घना है और यदि हम भय से प्रेरित नहीं है तो स्पष्ट सकल्प करना कुछ भी कठिन नहीं हो सकता।
SR No.010854
Book TitleAacharya Shree Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1964
Total Pages163
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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