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________________ ३६ पाचार्यश्री तुलसी विचारधारा नैतिक अनुमान का महत्व प्रस्ट करती है । यह मनुशासन माकार मैं छोटा होते हुए भी परिणाम की दृष्टि से बहुत विधान है अपने प्रारम्भिक जीवन में प्राचार्यथी तुलसी ने परत कड़े प्रशासन का पालन किया। वे यह मानते थे कि कठोर तपस्या के द्वारा ही मनुष्य इस संसार में नया जीवन प्राप्त कर सकता है। नये जीवन का यह पुरस्कार प्रत्येक व्यक्ति अपने ही प्रयत्नों से प्राप्त कर सकता है। नया जीवन भरने पाप नहीं मिलता । उसे प्राप्त करना होता है । माचार्य तुमी के कथनानुसार प्रत्येक व्यक्ति को अपना लक्ष्य निर्धारित करना चाहिए। भारत जैसे देश में ही प्राचार्य तुलसी जैसे महापुरुष जन्म से सकते है । तपस्या के द्वारा नया जीवन प्राप्त करने के लिए भारतीय पूर्वजों का उदारहण मौर भारतीय सांस्कृतिक सम्पदा अत्यन्त मूल्यवान् भाती है । मैं प्राचार्य तुलमी से मिला हूँ। मैंने अनुभव किया कि वे ईश्वरीय पुरुष हैं और उन्होने ईश्वर का सन्देश फैलाने मीर उसका कार्य पूरा करने के लिए ही जन्म धारण किया है । वे न भूतकाल मे रहते हैं, न भविष्य काल में । वे दो नित्य वर्तमान में रहते हैं। उनका सन्देश सत्र युगो के लिए और सारी मानवजाति के लिए है । ईश्वर द्वारा मनुष्य की खोज अज्ञात काल से मनुष्य का आन्तरिक विकास केवल एक सत्य के माधार पर हुमा है । वह सत्य है— मानव द्वारा ईश्वर की खोज । इस बात को हम बिल्कुल दूसरी तरह से भी कह सकते हैं कि ईश्वर भी मनुष्य की सोज कर रहा है । ईश्वर को मनुष्य की खोज उतनी ही प्रिय है जितना कि मनुष्य ईश्वर की खोज करने के लिए उत्सुक है। एक बार यदि हम समझ लें कि ईश्वर और मनुष्य दो पृथक सिद्धान्त नहीं हैं, पूर्ण मनुष्य हो स्वयं ईश्वर होता है तो दुनिया के सभी धर्म आत्म-ज्ञान प्राप्त करने के भिन्न-भिन्न मार्ग प्रतीत होगे । जब मनुष्य ईश्वर का साक्षात्कार करता है तो वह केवल मपनी सर्वश्रेष्ठ मात्मा का ही साक्षात्कार करता है । थाचार्य तुलसी के सन्देश का आज के मानव के लिए यही प्राशय है कि स्वयं अपने लिए अपनी अन्तरात्मा के अन्तिम सत्य का पता लगाये । यही Am
SR No.010854
Book TitleAacharya Shree Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1964
Total Pages163
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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