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________________ माण भी attrafalfATH भी कहना है नही हम गे माग नागे, हमारी परराष्ट्रमोमानाने हो निनामी-farmer और ईमानस नही होगे. हमीमीरको मITRA र गगे। राष्ट्र की म मापारि की पोतात. पारि माने नहीं है । राष्ट्र कर स ति और मो मारनाममार और ननित नागरिक जिन्हें अपने riyों और शिक्षा का गम भान होना है। भारत राशनका भी धर्मपा है, जिगराम है-मभी प्रगति धन प्रति नतम और मामा में मनमरण में ही है। यदि इस बिल को हम भूतादंगे तो हमारा भी बल्याग नहीं हो साना। पषस-पादोलनको नमिक सयोजनाही एक विशिष्ट उपवमानः है। यह पान्दोगन व्यगित को मुप्त ननिक भावना पो उदबुद्ध करता है। विवेकपूर्व जीवन पा ममत्व प्रत्येक व्यक्ति की गम माना है। प्रभावशाली व्यक्तित्व भारत के मुझ जैसे बहत-से व्यक्ति पाज प्रामायंबा तलमी को केवल एक पंथ के प्राचार्य नही मानते हैं। हम तो उन्हें देश के महान व्यक्तियों में से ए' प्रभावशाली व्यक्ति मानते हैं, जिन्होंने भारत में नीति और सन्यवहार झंडा ऊंचा उठाया है। प्रणुव्रत-पान्दोलन द्वारा देश के हजारो और माता व्यक्तियों को अपना नैतिक स्तर ऊंचा करने का अवसर मिला है और भाव में भी मिलता रहेगा। यह प्रान्दोलन बच्चे, बडे, नौजवान, स्त्री पुष्प, सरकार कर्मचारी, व्यापारी वर्ग प्रादि सबके लिए खुला है। इसके पीछे एक ही पनि और वह है-नतिक शक्ति । यह स्पष्ट ही है कि इस प्रकार का मान्दाला सरकारी शक्ति से संचालित नहीं किया जा सकता। भारतवर्ष में यह परमराह रही है कि जनता से नैतिकता ऋपि, मुनि व माचार्यों द्वारा ही संचालिनहुरह। __ मैं प्राशा करता है कि प्राचार्यश्री तुलसी बहत वर्षों तक इस देश की जनता को नैतिकता की पोर ले जाने में सफल रहेगे और उनके जीवन से हमारा १ लाखों व्यक्तियों को स्थायी लाभ मिलेगा।
SR No.010854
Book TitleAacharya Shree Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1964
Total Pages163
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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