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________________ एक पंथ के आचार्य नहीं श्री श्रीमन्नारायण सदस्य, योजना आयोग नि.सन्देह करोडो मानब प्राज प्राथमिक और मामूली जरूरतें भी पूरा नही कर पाते हैं, अत उनका जीवन-स्तर पर उठाना परम पावश्यक लगता है। प्रत्येक स्वतन्त्र भोर लोकतन्त्री देश के नागरिक को कम-से-कम जीवनोपयोगी वस्तु तो अवश्य ही मिल जानी चाहिए, परन्तु हमे अच्छी तरह समझ लेना होगा कि केवल इन भौतिक प्रावश्यकताप्रो की पूर्ति कर देने से ही शान्तिपूर्ण और प्रगतिशील समाज की स्थापना नहीं हो सकेगी। जब तक लोगों के दिलोंदिमागों मे सच्चा परिवर्तन नही होगा, तब तक मनुष्य जाति को भौतिक समृद्धि भी नसीब नही होगी। सादगी और दरिद्रता पाखिर मनुष्य केवल रोटी खाकर हो नहीं जीता और न भौतिक सुखसामग्री से मनुष्य को सच्चा मानसिक और मात्मिक सुख ही मिल साता है। हमारे देश की सस्कृति मे सो पनादि काल से नैतिक मोर माध्यात्मिक मल्यों को सबसे अधिक महत्त्व दिया गया है। इस देश में तो मनुष्य के धन-वैभव को देखकर नहीं, उसके सेवा-भाव और त्याग को देखकर मादर होता है। यह सच है कि दरिद्रता अच्छी चीज नहीं है मौर माधुनिक समाज को, एक निश्चित मात्रा मे कम-से-कम भौतिक सुख-सुविधा तो सबको मिले, ऐसा प्रवाध करना होता है। परन्तु सादगी का अर्थ दरिद्रता नहीं है और न जरूरतें बढ़ा देना प्रगति की निशानी हमे भौतिक और नैतिक कल्याण भौर विकास के वीष एक सन्तुलन उपस्थित करना होगा। यह ध्यान प्रतिदिन रखना होगा कि माथिक संयोजन में लक्ष्यों को पूरा करने के साथ-साथ नैतिक पुनहत्थान के लिए
SR No.010854
Book TitleAacharya Shree Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1964
Total Pages163
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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