SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 25
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ } + १२ प्राचार्य मी जुड़ा हुआ है। इनके होने पर को नहीं की जा सकी। मागुनमा भूतपूर्वमायोजन है। रित्र-निर्माणको दिशा में एक कोटे स्वभाव से हो मानव सपा की परिधि में बाहरी फोर में भी यही तथ्य निहित है। माया होता है। माने में या है तो उनके श्री प्रवृति जागृत होती है और उपान्तकरण वनों की ओर बेईमानी और पता जब व्यक्तिको हो रवैव वैमनस्य, शील और अनाचार को दूर करने इस प्रति के उदन होते ही स्वाग श्री होना है। जीवन सुधार की दिशा में वनों का महत्व सर्वोपरि है। वन में प्रधानसे ग्रात्मानुशाशन को यकता होती है। जिस प्रकार सिदान्त बायन करना जितना महान है, उस पर अमल करना उतना ही कठिन, उमी प्रकार लेना तो मासान है, पर उसका निभाना बडा मठिन होता है। व्रतमान में स्वनियमन व हृदय परिवर्तन से बड़ी सहायता मिलती है। भरत के पाँच प्रकार हैं- प्रहिसा, सत्य, प्रवीर्य, ब्रह्मवयं या स्वदारसंतोष और परिग्रह या इच्छा-परिमाण | महिला - रागद्वेषात्मक प्रवृत्तियों का निरोध या प्रारमा की राग-द्वेप-रहित प्रवृत्ति है। सत्य हिंसा का रचनात्मक या भाव प्रकाशनात्मक पहलू है । श्रवौयं - महिसात्मक अधिकारों की व्याख्या है । ब्रह्मवर्ष--अहिंसा का स्वात्म रमणात्मक पक्ष है । - अपरिग्रह - प्रहिसा का परम-पदार्थ-निरपेक्ष रूप है । व्रत हृदयपरिवर्तन का परिणाम होता है । बहुषा जन साधारण का हृदय उपदेशात्मक पद्धति से परिवर्तित नहीं होता । भतः समाज को दुव्र्व्यवस्था को बदलने के लिए भी प्रयत्न किया जाता है। उदाहरण के लिए मार्थिक दुस्वस्या व्रतों से सीधा सम्बन्ध नहीं रखती, किन्तु भात्मिक दुव्यवस्था मिटाने के लिए और संयत, सदाचारपूर्ण जीवन-यापन की दिशा में व्रत बहुत उपयोगी होते हैं । हृदय परिवर्तन पोर व्रताचरण से जब ात्मिक दुव्यवस्था मिट जाती है तो
SR No.010854
Book TitleAacharya Shree Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1964
Total Pages163
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy