SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 150
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ द्वितीय संत तुलसी श्री रामसेवक श्रीवास्तव सहसम्पादक, नवभारत टास, समा सन् १९५५ को बात है, जब मरावत-प्रान्दोलन के प्रवतंक प्रापाको तुलसी बम्बई में थे और कुछ दिनों के लिए वे मुलुण्ड (बम्बई का एक उपनगर) में किसी विशिष्ट समारोह के सिलसिले में धारे हुए थे। यहीं पर एक प्रश्न का प्रायोजन भी हमा था। सार्वजनिक स्थान पर सानिय प्रयपन होने के नाते में भी उसका लाभ उठाने के उद्देश्य से पहुंचा हुमाया। प्रवचन में कुछ पनिच्छा से ही मुनने गया था क्योकि इससे पूर्व मेरी पारणा साधुनों तथा उपदेशको के प्रति, विशेषतया पोरसको के प्रति को बहुत मच्छो न पी प्रौर ऐगे प्रसमा में प्राय महात्मा तु रसोशाम को उस परिव को दोहगने समता था, जिसमें उन्होने पर उप दुसरे, मावाहिते नरन पनेरेहकर समापदंशकोहीसबरमी है। परन्तु पावायत्री सुनमी के प्रवचन के बाद जब मैंने उनकी और उनके वियोंकी औरत का निसटपरीम किया तो मैं स्वयं अपनी पा से बरसम पतना मा सराक प्रात्न म्लानि एक प्रभावन कर पो पाद पर गई और भाषायो नमोनियालिनाने प्रथा भाष मनम हानेकनारा डा कारनामा छपा। मारे सम्मा मैं FRो Net किमो में समान गया ही नहीं। मुनिको से भेंट निगा नुनको नमामी की सेवा के न होना परमार 14iam करने की "241411. नीनाका परिका
SR No.010854
Book TitleAacharya Shree Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1964
Total Pages163
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy