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________________ १२५ अनुपम व्यक्तित्व को पूरी छूट रहती है । यह मैं अपने अनुभव की बात कर रहा हूँ। प्रेरक व्यक्तित्व उन्होने प्रारम-साधना से अपने जीवन को इतना प्रेरणामय बना लिया है कि उनके पास जाने से यह नहीं लगता कि यहाँ पाकर समय व्यर्थ ही नष्ट हुमा । जितनी देर कोई भी व्यक्ति उनके निकट बेटता है, उसे विशेष प्रेरणा मिलती है। उनकी यह एक और बडी विशेषता है जिसे कि मैं और कम व्यक्तियो मे देस पाया हूँ। वे जिस किसो व्यक्ति को भी एक बार मिल चुके है. दूसरी बार मिलने पर उन्हें कभी वह कहते हुए नहीं सुना गया कि भाप कौन हैं? अपने समय में से कुछ-न-कुछ समय निकाल कर वे उन सभी व्यक्तियो को अपना शभ परामर्श दिया करते है, जो उनके निकट किसी जिज्ञासा अथवा मार्ग दर्शन की प्रेरणा लेने के लिए जाते है। अनेक ऐसे व्यक्ति भी देखे हैं कि जो उनके मान्दोलन में उनके साथ दिखाई दिये और बाद में वे नहीं दोख पाये । तव भी प्राचार्य जी उनके सम्बन्ध में उनको जीवन-गतिविधि का किसी-न-किसी प्रकार से स्मरण रखते हैं । यह उनका विराट व्यचित्तत्त्व है, जिसकी परिधि मे बहुत कम लोग मा पाते है । ऐसा जीवन बनाने वाले व्यक्ति भी कम होते हैं, जो ससार से विरक्त रह कर भी प्राणी-मात्र के हित चिन्तन के लिए कुछ-न-कछ समय इस काम पर लगाते हैं और यह सोचते हैं कि उनके प्रति स्नेह रखने वाले व्यक्ति अपने मार्ग से बिछुड़ तो नहीं गए हैं ? विशेषता कभी-कभी उनके दर्य को देख कर, बहा पाश्चर्य होता है कि यह सर भाचार्यजी किस तरह कर पाते हैं । कई वर्ष पहले की बात है कि दिल्ली के एक सार्वजनिक समारोह मे, जो प्राचार्यजी के सान्निध्य मे सम्पन्न हो रहा था, देश के एक प्रसिद्ध धनिक ने भाषण दिया । उन्होने जीवन और धन के प्रति मपनी निस्सारता दिखाई। एक युवक उम धनिक को उस बात से प्रभावित नहीं हुपा । उसने भरी सभा मे उस धनिक वा विरोध क्यिा । उस समय पास मे बैठा हुमा मैं यह सोच रहा था कि यह युवक जिस तरह से उस घनिक के विरोध मे भाषण कर रहा है. इसका क्या परिणाम निकलेगा, कि उन पनिक के हो निवास स्थान पर माचार्यजी उन दिनों ठहरे हुए थे मोर उस
SR No.010854
Book TitleAacharya Shree Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1964
Total Pages163
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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