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________________ १२४ पाचार्यश्री तुलसी करती है। जीयन को यही विशेष रूप से मफलता है, जिसे प्राचार्य तुलसी पानी सतत साधना से प्रारा कर सके है। मत प्राम्दोलन सब मनुष्य के जीवन को इतनी किटता प्राप्त कर चुका है कि वह कुछ मामलों में एक सच्चे मित्र की परह से समाज का मार्गदर्शन करना है। नहीं नो उगे दिल्ली मार देश के दूसरे स्थानों में से बाग मिलसा और क्यों विद्यार्थी, महिलाएं और दूसरे प्रमिया एवं पनिर वर्ग उप्राना ? इससे यह प्रकट होता है कि प्रान्दोलन में कुछ-न-चार प्रभाव अवश्य है । बिना प्रभाव में यह प्रान्दोनन देशव्यापी नहीं बन सकता। सतत साधना अनेक बार पाचार्यजी के पाग चेटने पर ऐमा जान पड़ा कि वे जीवन दर्शन के कितने बड़े पण्डित है, जो केवल दिमी भी पान्दोलन को मरने तक ही सीमित रहने देना नहीं चाहते । प्रभी पिछले दिनों की बात है कि उन्होंने सुझाव दिया कि अणुव्रत-पादोनन के वार्षिक अधिवेशन का मेरी उपस्थिति में होना या न होना कोई विशेष महत्त्व की बात नहीं है। इस तरह से समाज के लोगों को अपने जीवन सुधारने की दिशा में प्राचार्य जी ने बहुत बार प्रयत्न क्रिया है। इस सम्बन्ध में उनका यह कहना कितना स्पष्ट है कि भविष्य म का पवित यह नहीं कहे कि यह कार्य प्राचायजी की प्रेरणा प्रयवा प्रभाव के कारण ही हो रहा है। वे चाहते है कि व्यक्तियों को किसी के साय कर मात्म-सम्युदय का मार्ग नहीं खोजना चाहिए। जीवन की प्रत्येक प्रवृत्ति से प्रेरणा लेनी चाहिए। जीवन जिस मोर उन्हे प्रेरणा दे, वह काम उन्हें करना चाहिए। यह सब देखकर प्राचार्यजी को समझने में सहायता मिल सकती है। वे उन हजारों साथमो की तरह अपने सिद्धान्तों को ही पालन कराने के लिए दुराग्रही नहीं हैं, जैसा कि बहुत से लोगों को देखा गया है, जो अपने अनुः यायियों को अपने निदिष्ट मार्ग पर चलने के लिए हो विवश किया करते हैं । प्राचार्यजी के पनुयायियों में कांग्रेस, जनरूप, कम्युनिस्ट, समाजवादी मार तक कि जो ईश्वरीय सत्ता में विश्वास नहीं करते. ऐसे भी शक्ति है। +. 'मानते हैं कि जो लोग अपने को नास्तिक बहने हैं, वे वास्तव में • नहीं है। इसलिए पाचार्यजी के निकट पाने में सभी वर्गों के व्यक्तियों
SR No.010854
Book TitleAacharya Shree Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1964
Total Pages163
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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