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________________ मानवता के उन्नायक १११. में उन्होंने कहा - 'रोटी, मकान, कपड़े की समस्या से अधिक महत्त्वपूर्ण समस्या मानद में मानवता के प्रभाव की है ।' मानव हित के चितक मानव हित के चिन्तक के लिए आवश्यक है कि वह मानव की समस्याओं से परिचित रहे | आवाधी उस दिशा में अत्यन्त सजग हैं । भारतीय समाज के सामने क्या-क्या कठिनाइयों हैं, राष्ट्र किस सकट से गुजर रहा है, अन्तर्रा ष्ट्रीय जगत के क्या-क्या मुख्य मसले है, इनकी जानकारी उन्हें रहती है । वस्तुत. बचपन से ही उनका झुकाव अध्ययन और स्वाध्याय की घोर रहा है और जीवन को वे सदा खुनी पांखो से देखने के मभिलापी रहे हैं | अपने उसी अभ्यास के कारण प्राज उनकी दृष्टि बहुत ही जागरूक रहती है और कोई भी छोटी-बडी समस्या उनको तेज आँखो से बची नही रहती । जैन-धर्मावलम्बी होने के कारण महिसा पर उनका विश्वास होना स्वाभा विक है | लेकिन मानवता के प्रेमी के नाते उनका वह विश्वास उनके जीवन की स्वास बन गया है। हिंसा के युग में लोग जब उनसे कहते हैं कि प्राणविक स्त्री के सामने पहिया से सफल हो सकती है तो वे साफ जवाब देते हैं, "लोगों का ऐसा बहना उनका मानसिक भ्रम है । आज तक मानव-जाति ने एक स्वर से जैसा हिमा का प्रचार किया है, जैसा यदि हिंसा का करती तो स्वयं धरती पर उतर माता । ऐसा नहीं किया गया, फिर में सन्देह क्यों ?" हिंसा को सफलता मागे वे कहते हैं- "विश्व शान्ति के लिए प्रमावश्यक है ऐसा कहने वालों ने यह नहीं सोचा कि यदि वह उनके शत्रु के पास होता तो " धर्म-पुरुष आचार्यश्री की भूमिका मुख्यतः साध्यात्मिक है । वे धर्म-पुरुष हैं। धर्म के प्रति माज की बढती विमुखता को देल कर वे बढ़ते हैं, "धर्म से कुछ लोग चिढ़ते हैं, किन्तु वह भूल पर हैं। धर्म के नाम पर फैली हुई बुराइयों को मिटाना धारक है, न कि धर्म को धमं जनवत्या का एकमात्र साधन है ।"
SR No.010854
Book TitleAacharya Shree Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1964
Total Pages163
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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