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________________ - - (४४) सद्यायमाला. कवहींक देव विनोद ॥चे ॥३॥ कीमी पतंग हरि मातंगपणुं जजे रे, कबही सर्प सीयाल ॥ ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य कहावतो रे, होवे शूल चंमाल ॥चे॥४॥ खख चोराशी चडटे रमतो रंगशुं रे, करी करी नव नव वेश ॥ रूप कुरूप धनी निर्मव्य सोजागिउँ रे, पुर्जागी दरवे श ॥चे॥५॥ अव्या क्षेत्र सूक्ष्मने बादर नेदशुं रे, काल लाव पण तेम ॥अनंत अनंता पुद्गल परावर्तन कस्यां रे, कह्यो पन्नवणा एम ॥चे॥६ ॥नाई बहिन नारी तातपणुं नजे रे, मातपिता होये पूत्र ॥ तेहज नारी वेरीने वलि वालहो रे, एह संसारह सूत्र ॥ चे॥७॥ नवनजानु जिन नांख्यां चरित्र सुणी घणां रे, समज्या चतुर सुजाण ॥ कर्म वि. वरवंश मूकी मोह विटंबना रे, मट्या मुगति जिन जाण ॥ चेण ॥७॥ .. .. . ॥दोहा॥ ॥ श्म जव जव जे मुख सह्यां, ते जाणे जगनाथ ॥ जयनंजण नावठ हरण, न मल्यो अविहम साथ ॥ १॥ तिण कारण जीव एकलो, बोमी राग गलपास ॥ सवि संसारीजीवद्यु, धरी चित जाव उदास ॥२॥ ॥ ढाल चोथी॥ ॥ राग गोमी ॥ पूत न कीजे हो साधु विसासमो ॥ चोथी नावना नवियण मन धरो, चेतन तुं एकाकी रे॥आव्यो तिम जाश्श परनव वली, शहां मूकी सवि बाकी रे॥ मम करो ममता रे समता आदरो ॥१॥ आणो चित्त विवेको रे ॥ खारथियां सऊन सहुए मख्यां, सुख मुख सहेशे एको रे ॥ मम॥२॥ वित्त वहेंचण आवी सहुये मले, वि पति समय जाय नाशी रे ॥दव बलतो देखी दश दिशे पुले, जिम पंखी तरुवासी रे॥मम॥३॥ खट खंग नवनिधि चौद रयण धणी, चौसठ सहस्स सुनारी रे॥ हमे बोमी ते चाल्या एकला, हास्या जेम | जूयारी रे ॥मम॥४॥ त्रिभुवन कंटक बिरुद धरावतो, करतो गर्व गु मानो रे॥त्रागा विण नागा तेह चट्या, रावण सरिखा राजानो रे॥ममण ॥५॥ माल रहे घर स्त्री विश्रामिता, प्रेतवना लगें लोको रे॥ चय लगें काया रे आखर एकलो, प्राणी चले परलोको रे ॥मम॥६॥ नित्य कः लहो बहु मेलें देखी, बिहुँ पण खटपट थाय रे ॥ वलयानी परें विह रिस एकलो, श्म बज्यो नमीरायो रे ॥मम ॥ ॥ इति चतुर्थ भावना॥
SR No.010852
Book TitleSazzayamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1988
Total Pages425
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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