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________________ श्री पांच पांमवनी सद्याय, . (३७५) - - - - - - - - - - -- - - । सती, वली माली बीजी नारी रे॥वली माडी बीजी नारी रे ॥१॥ पांव पांचे वांदतां मन मोहे रे, मन मोहे मोहनवेलि ॥ त्रिजगमाहे दीपता अति सोहे ॥ ए आंकणी ॥ त्रण पांव जया कुंतिना, माजिना पांमत्र दोय रे ॥ पंच सहोदर सारिखा, नलकूबर सरिखा होय रे ॥ नलकूण ॥ पांग ॥ एक दिन थिविर पधारिया, पांच बांधव वांदवा जाय रे ॥ दे शना सुणि मन गहगह्या, नाइ समय जाय जे आय रे ।। नापां। ३॥ जिनवर चक्रवर्ती जे हुआ, स्थिर न रह्या को देव नूप रे ॥तन धन सहु सुहणां समां, संसार, विषमुंखरूप रे ॥ संसा० ॥ पांगामा संसार मांहे पलेवडं, लागुं ते केम जैलाय रे ॥ जिनवर वाणी सिंचता, आपणां नव जवनां फुःख जाय रे ॥ आप ।। पां ॥ ५॥ पांव पांचे विचारियुं, आपण लेशुं संयम नार रे ॥ पुत्रने राज आपी करी, प्रौपदीशुं करे रे विचार रे ।। प्रौपदी पां॥६॥ प्रौपदी वलतुं एम कहे, अमें मेल\ संसारनो पास रे ॥ कंत विना शी कामिनी, मुफ चलो नहिं घरवास रे॥ मुज० ॥ पां ॥७॥ पांचे आवी गुरुने कहे, अमें लेहशुं संयम नार रे ।। मानव नव अति दोहिलो, वलि पालवो समय सार रे॥ व०॥ पां० ॥ ॥ गुरु कहे पांडव सुणो, तमे राजपुत्र सुकुमार रे ॥ चारित्र पंथ अति दो हिलो, तमे केम सहेशो नूपाल रे ।। तमे ।। पांण् । ए। घर घर निदा मागवी, वली हीमवू घर घर बार रे ।। पाय अणुवाणे चालवू, वलि चाल q खांमाधार रे ।। वलि॥ पांग ॥ १० ॥ संयम मारग आदरे, कषि पाले निरतिचार रे ॥ दोष वेहेंतालीश टालता, साधु ले छे शुद्ध आहार रे ॥ साधु ।। पांग ॥ १९ ॥ तप तपे अति आकरां, मासखमण मन रंग रे ॥ जिण लगि नेमि वांदियें, अनिग्रह कल्यो मन चंग रे । अनि ॥ पांण |१२॥ हस्तिनागपुर पधारिया, पारणानो दिवस ते जाण रे ॥ नगर क । रतां गोचरी, सुएयु नेमितणुं निर्वाण रे ॥ सुएझुं॥ पांग ॥ १३ ॥ श्रा हार वोहयो ते लेवल्या, आव्या निज गुरुनी पास रे ।। गुरुने कहे अमें सांजदयु, नेमिजी पहोता शिवपुरवास रे । नेमि०॥ पां ॥१४॥ अम मनोरथ मनमा रह्या, नवि पहोता गढ गिरनार रे ॥ आहार लेवो जुगतो नदि, अमोने अणसण सार रे ॥अप ॥ पां ॥ १५॥ मास खमणतुं पारएं, नवि कीg मुनिवर कोय रे ॥ आहार परवव्यो कुन .. . - -
SR No.010852
Book TitleSazzayamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1988
Total Pages425
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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