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________________ - - - - - श्री गजसुकुमारनी सद्याय... । (३३३ ) न जाणे नेद ॥ राग पके पूंडडे रे माता, वाध्यां वैर विराध रे हो ज ननि ॥ हुं० ॥ १०॥ साधुपणामें सुख घणां रे माता, नहिं पुःखरो स वलेश ॥ मसशे सोइ खावशुं रे माता, सोश साधु उद्देश रे हो जननि ॥ हुं०॥ १५॥ एकलो उठी जायशे रे माता, कोंन राखणहार ॥ एक जीवके कारणे रे माता, क्युं करे एतो विलाप रे हो जननि ॥ ९० ॥ २॥ ॥ न को धन्नो मर गयो रे माता, न को गयो परदेश ॥ जग्या सोश श्राथमे रे माता, फूटया सो करमाय रे हो जननि ॥ हुं ले॥२१॥ का. व चिंतो मारशे रे माता, कोण बोडावण हार ॥ कर्म काट मुक्त गया रेमाता, देवलोक संसार रे हो जननि ॥ले ॥ २२ ॥जे जेसो करणी करे रे माता, तिन तेसां फल होय ॥ दया धरम संयम विना रे माता, शिवसुख पामे न कोय रे हो जननि ॥ खेझुण्॥ ३ ॥ इति । ॥अथ मकनकविकृत श्री गजसुकुमारनी सचाय ॥ ॥एक घ घोडा हाथीया जीरे, पायक संख्य अपार ॥ ए देशी॥जी रेसरखती समरूं शारदा, जीरे पनएं सुगुरु पसाय ।।जीरे गजसुकुमार गुणे जत्या, जी रे उलट अंग सघाय । मोरा जीवन, धर्म हैयामां धार।। २॥ ए आंकणी ।। जी रे दी नगरी धारिका, जी रे वासुदेव नरपति नंद।। श्रीकृष्ण राज करे तिहां, जी रे प्रगट्यो पूनम चंद ।। मोरा ॥शा जीरे न्यायवंत नगरी घणी, जीरे चलियो चलने वीर ॥ जीरे कोश कला गुणें करी, जीरे आपे अति मन धीर । मो० ॥३॥ स्वामी नेम स मोसस्या, जीरे सहसावन्न मजार ।। जी रे बहु परिवारे परवस्या, जीरे गुण मणिना मार । मोमाजी रे वंदण आव्या विवेकथी, जी रेक घणादिक नर नार ॥ जी रे वाणी सुणाचे नेमजी, जी रे वेठी पर्षदा बार ॥ मो॥५॥ जीरे गजसुकुमार गुणे नख्या, जीरे आव्या वंदण एह ॥जी रे विनय करोने वांदिया, जीरे त्रिकरण करीने तेद ॥ मो० ॥६॥जीरे दिये देशना प्रजु नेमजी, जीरे या अथिर संसार जीरे एक घडि मां नगी.च, जीरे को नहिं राखणदार ।।मोणा॥ जीरे विधिविधि करी ने विनवू, जीरे सनिलो सहु नर नाराजी रेअंते कोश् केनुं नथी, जीरे आखर धर्म आधारमोणालाजी रे स्वामीनी वाणीसांजली,जीरंगजस कुमार गुणवंत ॥जीरे वैराग्ये मन वालीयु, जीरेवाणवा नवनो अंत मो० - - - -- - - - - - -- - - - - - - - -
SR No.010852
Book TitleSazzayamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1988
Total Pages425
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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