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________________ (१७) सद्यायमाला. - - - - काया कारमी, तेहनो करो रे जतन ॥ विष्णसंतां वार लागे नहीं, निर्मल राखो रे मन ॥ नूल्यो० ॥ ३ ॥ केहनां गेरू केहनां वारू, केहनां मायने वाप ॥ प्राणी रे जावू ने एक, साथे पुण्यने पाप ॥ नू० ॥३॥ आशा तो डंगर जेवडी, मरवू पगला रे हेठ ॥ धन संची संची कां करो, करो देवनी चेठ ॥नू ॥४॥ धंधो करी धन जोडियुं, लाखां नपर क्रोड ॥ मरणनी वेला मानवी, लीयो कंदोरो बोड ॥ नू ॥५॥ मूरख कहे धन माहरूं, धोखें धान्य न खाय ।। वस्त्र विना ज पोढवू, लखपति लाकडांमांय ॥जू॥६॥ नवसागर उःखजल नस्यो, तरवो ने रे तेह ॥ विचमांनय सबलो भयो, कर्म वायरोने मेह ।।जण ॥ ॥लख पति उत्रपति सब गया, गया लाख बे लाख ॥ गर्व करी गोखें वेसता, सर्व श्रया बली राख ।। नू ॥७॥धमरा भूखंती रे रहि गइ, बुज गइ लाल अंगार ।। एरणको ग्बको मच्यो, न चल्यो रे खोहार ॥ नू। ए॥ कवट मारग चालता, जावू पहेले रे पार ॥ पागल हाट न वाणोयो, संबल लेजो रे सार ॥ ॥ १५ ।। परदेशी परदेशमें, कुणतुं करो रे सनेह ।। आया कागल नठ चल्या, न ग ांधीने मेह । जूण ॥ ११ ॥ के चाल्या रे के ३ चालशे, के चालणहार ॥ के बेग रे बुढा वापडा, जाये नरक मजार ॥नू ।। १२ ।। जिण घर नोबत वाजती, पाता उत्राशे राग ! खंडेर था खाली पड्यां, बेंठण लागाने काग ॥ नू ॥ १३ ॥ नमरो आव्यो रे कमलमां, लेवा कमल, फूल ॥ कमलनी वांगायें मांहे रह्यो, जिम आश्रमते सूर ॥ ॥१५॥ सहगुरु कहे वस्तु वोरिये, जे को आवे रे साथ ॥ आपणो लान नगारीयें, लेखु साहिब हाथ ॥ नू ॥ १५ ॥ - - - ॥ अथ श्री यशोविजयजी नपाध्यायकृत आग्दृष्टिनी सद्याय प्रारंनः॥ ॥ शिवसुखकारण नपदिशी, योगतणी अडदिछी रे ॥ ते गुणधुणी जि नवीरनो, करसुं धर्मनी पुठी रे॥ वीरजिनेसर देशना ॥१॥ सघन अघन दिनरय णिमां, बाल विकलने अनेरा रे॥ अरथ जोये जेम जुआ, तेम नधनजरना फेग रे॥ वी॥॥ दर्शन जे श्रयां जूजूआं, ते नघनजरने फेरे रे ।। द निरादिक दृष्टिमां, समकेतहष्टिने हेरे रे । वी० ॥ ३॥ दर्शन सकलना नय आहे, आप रहे निजन्नाचे रे ॥हित करी जनने संजी
SR No.010852
Book TitleSazzayamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1988
Total Pages425
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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