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________________ ( १६ ) सद्यायमाला. शासन समकित श्राराधे, तेहनी करो मनोहारी जी ॥ ६ ॥ मिथ्यात्व ते जग परम रोग वे, वलीय महा अंधकारो जी ॥ परम शत्रुने परम शस्त्र ते, परम नरक संचारो जी || परम दोहगने परम दरिश् ते, परम संकट ते कं हियें जी ॥ परम कंतार परम पुर्निक ते, ते बांके सुख लहियें जी ॥ ७ ॥ जे मिध्यात्व लवलेश न राखे, शुद्धो मारग जांखे जी ॥ ते समकित सुरत रु फल चाखे, रहे वली अलीयें आखे जी ॥ महोटाइ शी होय गुण पाखें, गुण प्रभु समकित दाखे जी || श्रीनयविजय विबुध पय सेवक, वाचकज स इम जाखे जी ॥ ८ ॥ इति अठार पापस्थानक सद्याय समाप्त ॥ ॥ श्रथ निंदावारक सखाय ॥ || निंदा म करजो कोइनी पारकी रे, निंदानां बोल्यां महा पाप रे ॥ वयर विरोध वा घणो रे, निंदा करतो न गणे माय बाप रे || निं० ॥ १ ॥ दूर वलंती कां देखो तुम्हें रे, पगमां बलती देखो सहु कोय रे ॥ परना मलमां धोयां लुगडां रे, कहो केम कजलां होय रे ॥ निं ॥ २ ॥ आप संभालो सहुको आपलो रे, निंदानी मूको पडी ठेव रे || थोडे घो अवगुणेंस जरया रे, केहनां नलीयां चुंए केहनां नेव रे ॥ निं० ॥ ३ ॥ निंदा करे ते श्राये नारकी रे, तप जप को सहु जाय रे || निंदा करो तो करजो आपली रे, जेम बुटकवारो थाय रे ॥ निं० ॥ ४ ॥ गुण ग्रह जो सहुको तथा रे, जेहमां देखो एक विचार रे ॥ कृष्ण परें सुख पामशो रे, समयसुंदर सुखकार रे || निं० ॥ ५ ॥ इति निंदावारक सचाय ॥ ॥ अथ श्री नेमराजुलनी सधाय ॥ ॥ नदी जमुनांके तीर, बडे दोय पंखीयां ॥ ए देशी ॥ || पियुजी पियुजी रे नाम, जपुं दिन रातियां ॥ पियुजी चाल्या परदेश तपे मोरी बालीयां ॥ पग पग जोती वाट, वालेसर कब मिले | नीर वि. बोयां मीन, के ले ज्युं टलबले ॥ १ ॥ लुंदर मंदिर सेज, साहिब विल नंविगमे ॥ जिहां रे वालेसर नेम, तिदां मा मन जमे ॥ जो दोवे 'सजन दूर, तोदी पासें वसे ॥ कहां पंकज किहां चंद, देखी मन नल्लसे ॥ २ ॥ निःस्नेह शुं प्रीत, म करजो को सही || पतंग जलावे देह, दीपक मनमें नदी || वादाला माणसनो विजोग, म होजो केहनें ॥ साले रे साल स
SR No.010852
Book TitleSazzayamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1988
Total Pages425
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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