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________________ (२६७) संद्यायमासा प्रत्ये पाणं श्व॥ए । समकित आदरीये श्ण रीति, अतिचार पण टालो । नीति उन्नति कीजें जिन शासने,. चढले उत्साहें निज़मने ॥ १० ॥ वि पिशुदेव अने गुरुवंदि, नित्य पच्चरकाण करी आनंदित सात क्षेत्रे धन वावियें, पण परमेष्ठि सदा ध्याश्य ॥ ११ ॥ संघविनय कीजें लक्तिशु,न हिं तो समकित होये किश्यु ॥ पंचशुद्धि विधिशुलविजना, व्रत श्रादरी ये थशंशुमनां ॥२॥:.::.: . . . . . . . . ... .., ॥ ढाल बीजी राग परजीयो , स्थूल प्राणातिपात विस्मण, प्रथम अणुव्रत कथु जिने निरपराध नस जीव न ह[, संकल्पी निरपेक्षीने ॥३॥ घरो श्रावक विरति लक्जिन, सनी अविरती कतरे ॥ अंति रति जवज्रमण होवे, विरंतिथी नवजल तरे ॥१४॥ धरो श्रावक विरति | जविजन ॥ ए आंकणी ॥ हणावं पण नहीं त्रिकरणें, एम आहेतुं व्रत क यु.॥ स्थूल मृषावाय विरमण, अणुव्रत बीजुलीयुः ॥ ध० ॥ १५ ॥ कन्यका गोलूमि अलिअं, बोर्बु बोलावू नही। यापणमोसो साही कू डी, उंविध त्रिविधे पण नहीं ॥ ३० ॥ १६॥ हिसद चउपद सरवे जाणि, धूर तिग अलीय ।। स्थूल अदत्तादान विरमण, श्रीजुव्रत धरो अवश्य श्री। ध॥१७॥ पडी मूकी गई आवी, वस्तु चोरी:त्रिकरणे ॥ न करुन करावु किबारे; चोर नाम लहे जिणे ॥धः ॥२७ || स्वदारासंतोष श्र थवा, अन्यदारा वर्जना, स्थूलमैथुनःविरति.चोथु, अणुव्रत धरो सङना ॥ध० ॥१५॥ योषिता तो दार शब्दे, पुरुष अर्ज धरी मने ॥ दिव्यमैथुन विध त्रिविधे, मनुष्यनुश्क विध तने ॥धं ॥ २०॥ तिरियनुं श्कविध त्रिकरणे, एम नांगे मन धरो॥स्थूल.परिग्रह विरति पंचम, ते श्छामि ति करो ॥ ॥ २१ ॥ इहां नवविध परिग्रहनी, करवी संख्या ते सही ॥मान उपर अधिक त्रिकरणे, रखा, राखुं नही ॥ध ॥ २२ ॥ ढाल त्रीजी॥ रोग सारंग महार ॥ इमर आंबा आंबली रे॥ए देशी॥हा दिगविरमण व्रतें रे, दशदिशि कीजें मानः॥ जावा मोकलवा तणुं रे, ति गकरणें सावधान ॥श्शा नवि जन आदरीयें व्रत अंगें, जिम वरीये शिव वधू रंगें त्रविजन, आदरीयें व्रत अंगें। ए आंकणी॥सांतमुंबत सुविधा, धरो रे, लोगोपजोग परिमाण ॥ जोजनथी ने कर्मथी रे, तज अजक्ष्यादि. के जाण ॥ नवि०॥ ॥ जंबर पीपल पीपरडी रे, वड कढुंब वर पंच॥ । - - - -
SR No.010852
Book TitleSazzayamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1988
Total Pages425
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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