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________________ - - (२४६) .. सद्यायमाला. जावें पण नाणें ॥ चेतन झान दशा नजो, तजो परनी निंदा॥ उदासना वपणुं जजो, जिम जल. अरविंद्वा ॥ चतन॥१॥ ए आंकणी ॥ नवि जाणे नवि आदरे, नवि पाले अंगी तेह॥ मिथ्यात्वी सवि ज़न कह्या, पहिलें नंगे तेह ॥ चे ॥॥ नवि जाणे नवि आदरे, अंगी पुण पावें ॥ कष्ट क्रिया शीलादिकें, तापस तनु गाले॥चेण॥३॥ नवि जाणे वली आदरे, मुनिव्रत नवि पाले ॥पासबादिक उन्नवी, त्रीजे जंगें निहाले ॥चे॥४॥ नवि जाणे वली आदरे, पाले पुण अंगी॥अजव्य उत्सूत्र कथक, मुखा लह्या चोथे नंगे॥चेण॥५॥ जाणे पण नवि आदरे, व्रत नये नवि पाले। श्रेणिक प्रमुख जे समकिती, शासन अजुवाले ॥ चे॥६॥ जाणे पण नवि आदरे, शीलादिक पाले ॥ पंचानुत्तर सुरवरा, हो नेद निहाले। चे॥७॥ जाणे अंगी श्रादरे, मुनि व्रत नवि पाले ॥ गीतारथ प्रवचन ल | हे, सत्तम लेद विशाल ॥चे.॥G ॥ जाणे पाले आदरे, जिनमतना वेदी ॥चजविह संघ जे सुविरति, अहम नंग विनोदी ॥चे॥ ए॥ पढम चउजंगी मांहिला, मिथ्यात्व निवासी ॥ परचजनंगी समकिती, श्री जिनमतवासी ॥०॥ १०॥ए अडजंगी जावतां, विधिनें अनुसरतां॥ ज्ञानविमल मति तेहनी, जिन आण धरतां ॥ चे ॥ ११॥ इति ॥ ॥अथ श्री ज्ञानविमलजीकृत चेतनबोधनी सद्याय प्रारंजः।। चेतन अब कबु चेतिये, ज्ञाननयन उघाडी ॥ समता सहजपणुंज जो, तजो ममता नारी ॥ चे॥१॥ या कुनियां हे बाउरी, जेसें बाजीगर. बारी ॥ साथ कीसीके नां चले, जिवू कुलटा नारी ॥ चे॥ माया तरुना | या परें, न रहे स्थिरकारी। जानत हे दिलमें जना, पण करत. बिगारी | ॥चे॥३॥ मेरी मेरी तुं क्या करे, करे कोणशुं यारी ॥ पलटे एकही || पलकमें, ज्यु घन अंधियारी ॥०॥४॥ परमातम अविचल जजो चिदा नंद आकारी॥नय कहे नियत सदा करो, सब जन सुखकारी ॥५॥ :: ॥ अथ श्री ज्ञान विमलजीकृत आत्माने शीखनी सद्याय प्रारंजः॥ - माहरा बातम, एहिज शीख'संजालोकांहि कुमति कुसंगति टालो रे ॥माणा ए आंकणी॥ सुगुरु सुदेव सुधर्म आदरजे, दोष रहित चित्त ध| रजे॥दोष सहित जाणी परिहरजे, जीवदया तुं करजे रे ॥ मा ॥१॥ पाबली राते वहेलो जागे, ध्यानतणे लय लागे.॥ लोक व्यवहारथकी मत - - -
SR No.010852
Book TitleSazzayamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1988
Total Pages425
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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