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________________ - - - - नवकारफल तथा अष्टनंगीनी सद्याय, (५४५) ॥अथ श्री ज्ञान विमलजी कृत नवकारफलनी सद्याय प्रारंजः॥ ॥ए नवकार तणुं फल सांजली, हृदयकमलं धरि ध्यान॥ आंगें अनं त चोवीशी हुश्, तिहां ए पंच प्रधान हो॥१॥ आतम, समर समर नव कार ॥ जिन शासनमा सार, पंचपरमेष्टी उदार, त्रय कार्य निरधार हो श्रातम ॥सम०॥ ए'श्रांकणी॥ वनमा एक पुलिंद पुलिंदी, मुनि कहे तस नवकार। अंतकालें बेहु मंत्र प्रनावें, नृप मंदिर अवतार होगा । सैंणाशशरायसिंह अने रत्नवतीजे, प्रमंदा ने जरतार ॥ त्रीजे जवे ते मुक्त जाशे, आवश्यके अधिकार हो ॥ागासणाचारुदत्तें अंज प्रतिबोध्यो, संजलावी नवकार।।सुरखोके ते सुर थइ उपनो, करि सान्निधि तिणि वार हो.आणासा॥ नगर रतनपुरे मिथ्या तणी, वहूवरने दीये आलं ॥ महामंत्र मुखें जपे महासती, सर्पथयो फुलमाल हो ॥आ॥सं०५॥ नूमि पड़ी समजायें देखी, दीधो मुनि नवकार ॥ सिंहसराय तणे घर कुं वरी, जयच कस्यो विहार हो॥ ॥स॥६॥ नगर पोतनपुर शेठ तणो सुत, मलीयो त्रिदंनी साथ ।। महासत्त्व मन मंत्र जपंतो, खग मृत कने हाथ हो ।आणासाणा तेह विधन सवि पूरे नागे, सोवन पुरिसो पामी ॥कनकतणुं जिनजुवन करावी, स्थाप्या त्रिजुवनं स्वामी होगा ॥सणाणा यद प्रसन्न करी बीजोहें, लेवे मंत्र प्रजावें।।हुँमिक जदने पिंगल तस्कर, एहथी सुरपद पावे हो ॥ आ॥स॥ ए॥ सोमदत्त ने मणिरथ सिंहरथ, मावत ने कुविंद ॥ एम अनेक परमेष्ठी ध्याने, तरिया नविजन वृंद हो ॥आणासारणाग वासें जीव श्म चिंतवे; तो धर्म करशुंसार।। जव जनम्यो तव वीसरी वेदन, एहेलें गयो अवतार हो।आणासण॥१९॥ जिहां लगें आथ तिहांसहु साथी, निर्धनने ते मूकें। कूड कुटुंब तणे तुं काजें, कां आतसहित चूके हो।आणा सणा २२॥ यम राजा केणे नवि जीत्यो, सुकृत क ते पोते॥ अवसर बेरै बेर नहिं आवे, जाये जनम एम जोते हो । आ॥स॥ १३॥ सारं एह असार संसारे, श्रीजिनसेवा करियें | विषय कषायं करीने अलगा, छानविमल गुण धरिये हो॥श्राप ॥ स ॥१४॥ इति श्रीनवकार सद्याय समाप्तः।। ॥अथ श्री ज्ञानविमलजीकृत श्रेष्टनंगीनी सद्याय प्रारंनः।। ॥ सुगुरु देव सुधर्म, जेह तत्त्व न जाणे । मुनि श्रावक व्रत नाद रे, - -
SR No.010852
Book TitleSazzayamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1988
Total Pages425
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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