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________________ - - - - - - - - - - मणिचंकृत वैराग्यकारक सद्यायो. (२१५) पञ्चव में खेले, परपरणितिथी न्यारो रे॥श्राप सनावमें श्राप खेले, केवल नणा जस प्यारो रे ॥ जे ॥२॥ पुजल वस्तु देखीने न धसे, अनागत काल ननिरखेरे। वर्तमानमां.रहवे लखा, अतीत काल नवि परखे रे ॥ जे ॥३॥ बाह्य श्रातमातणां जे कारण, तेहने जाणी उवेखे रे। सार पणुं जगतमां देखे, अनंतचतुष्टय लेखे रे ॥ जे॥४॥ अंतर आतम मांहे रहेतो, परमातमने ध्यातो रे ॥ जणे मणिचंद तेइने नमीयें, आप सजावमें रातो रे ॥ जे०॥५॥इति ॥ ॥अथ चतुर्थ सद्याय प्रारंजः॥ ॥ राग केदारो॥श्रातम अनुनद जेहने होवे, चारचित्तनिज जाणे रे॥ विक्षिप्त जातायत सुश्लिष्ट, सुखीनतायें लय आणे रे ॥था॥१॥ विक्षिप्त ते अवसर चित्त जाणे, जातायत खेंची थाणे रे॥प्रथम अभ्यास | एणि परें होवे, किंचित् आणंद जाणे रे ॥आ॥२॥ सुश्लिष्ट ते वली गाडधु रहवे, सफाय ध्याननें योगें रे॥ सुलीन से निश्चल चित्त रहेवे, पर मानंद उपयोगें रे॥आ॥३॥माधि हातमा शरीरादिक जाणो, अंतर श्रातमें करी बांगो रे ॥ परमात्मा ते साक्षात् देखे, केवली सिक पिडाणे रे॥ ॥४॥ परमातमनुं ध्यान करंतां, रसलोहें सुवन रे ॥ चणे मणिचंद तेदने ध्यार्ड, जेनुं परमातममें मन्न रे। आ०॥५॥इति ॥ .. ॥अथ पंचम सचाया प्रारंजः॥ ॥राग केदारो॥ अनुनव सिद्ध आतम जे होवे, यसचतुष्टय जोवे रे ।। श्वा प्रवृत्ति स्थिरसिक यममां, निज शक्तं चित्त जोडे रे॥अ॥१॥ प्रथमयमें अहिंसादिक वारता, करतां सुणतां मीठी रे॥ जाणे जिननी आण आराधु, बीजी वात अनिही रे ॥ अ॥२॥ बीजे खमे प्रवर्ते यो गी, जिनआणा मांदे मागीरे ।। यम पालवाने तत्पर योगी, प्रमाददशा तस जागीरे॥अ॥३॥त्रीजे यममें यमी निरतिचारी, अप्रमत्त जुन रूपें रे॥ परिसह परनां वैरी तेह पासें, होवे ते शांतरसरूपें रे॥ ॥४॥ सिध्यम ते चोथो कहियें, परार्थक साधक शुधरे ॥ नणे मणिचंड योगदृष्टि तंत्रे, वचन श्रीहरि बुद्धरे । अ० ॥५॥ इति ॥ ॥अथ षष्ठ सद्याय प्रारंजः॥.. राग केदारो ॥ कोये किनहींकू काज.न आवे, मूढ मोहे वेला ग|| - - - - - -
SR No.010852
Book TitleSazzayamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1988
Total Pages425
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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