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________________ (२४) सद्यायमाला. वारोवार ॥ पुर्गति कापे निश्चे सही, त्रीजा बोलथकी ए सही ॥४॥ वंदन करतो नावथी वली, चेतन अव्यना गुणकेवली॥घणे वीर्य उदासे जेह, चोथी क्रियानो म पर संदेह ।।५ ॥ निंदाकरे विनावज तणी, रा गादिक पुःख देता जणी ॥ लघुकर्मी तिणे निश्चे थाय, पंचम क्रियायें गु ण बोलायः ॥६॥ ध्यान धरंतो तेहनो धणी, थिर करी थापे बहुगुण जणी ॥ धातिकर्मनो बेदक तेह, बही क्रिया पर संदेह ।।७॥ श्मलघुता यें चिंते घj, घणा मोक गया हुं नमुं॥ तो हु हीणपणाथी बहु, गुण सातमे ते श्म सदडं ॥७॥ एकलो मरे एकलो जन्मीजें, सखायकिणे नवी नीपजे ॥ सुखकुःख.तेतो एकलो एह, सर्वथी अलगो आग्मे तेह ॥॥ रस समता ते नवमो जाणी, सर्वनूतनिज नूत समाणी ॥ सरखा खनाव चतुर्गुणना कह्या, नवसे बोले शिवपद लह्या-॥१०॥ एहवा जवजे धरे मुर्णिद, कथनी कथीए गणि मुणिचंद ॥ विनय करीने जणशे जेह, अविचल पदवी लेहशे गेह ॥ ११ ॥ इति ॥.. ॥ अथ द्वितीय सद्यायःप्रारंजः॥ ॥ जे देखु ते तुक नही, नवि देखू ते तूही ॥णनावे वरते सदा, संघले तुहिंजतुहिं ॥१॥ जेणे तुझकुं पिगणीयो, नवि जूवे पारकी लार॥ आपसच्चांवमें ते रह्यो, नवि लीये मनकी सार ॥२॥ दोहा ॥ मनें जे आणी में लीयो, आतमगुणने सार ॥ मनकू पूरे मूकीने, शून्य न करे व्यापार ॥३॥ ताली लागी आपकुं, परकू देखत नांहिं ॥ आप सना वमें जीलतो, जाणे सब वस्तु याही ॥४॥ एणीपरे ज्योति जगायकें, उद्योत नये सब ठगेर ॥ अंतरंग प्रगटी कला, हुवे उरकी उर ॥५॥ ढाल || जीत्यो जीत्यो रे मोटो मोहराय के, दीठी दीनी रे लोकालोक आज के ॥ जाण्या जाण्या रे स्थूल सूदम काज के, पाम्या पाम्या रे था तम गुणराज के ॥६॥ नामगोत्र उदयथी पूजे सुरराज के, वेदनी आज थी विचरे महाराज के ॥ शैलेशीकरणे शिवरांजके, नणे मणिचंड सिक ला हवे काज के ॥७॥इति ॥ ॥अथ तृतीय सद्याय प्रारंजः॥ ॥राग केदारो॥जेहने अनुजय बातम केरों रे, होवे ते धन्य धन्य रे॥ सारपणुं चित्तमें ते जावे, नेद अनेद जिन्नाजिन्न रे ।। जे॥१॥ अव्य गुण | - - - 27-
SR No.010852
Book TitleSazzayamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1988
Total Pages425
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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