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________________ (१९०) - सद्यायमाला. - - - - रूयडो, रयणडीप समानो रे॥.अनुक्रमें अनुसरीने थयो, आगम रयणं निधानो रे ॥मा॥७॥ विकथा उत्सूत्र वायथी, हास्यो रयणनी राशि रे॥आस्ता प्रवहण नांजियु, थयो चउगति वासी रे ॥मा ||७|पंच म रयणतणो कह्यो, नरजवनो दृष्टांत रे॥ धीरविमल गुरु सानिधे, कवि नय कहे गुणवंत रे ॥मा॥'ए॥ सर्वगाथा ॥७॥इति नरनव दृष्टांता धिंकारे रत्नराशिनामा पंचम दृष्टांत सद्याय समाप्त ॥५॥ ॥अथ स्वप्ननामा षष्ठदृष्टांताधिकार स्वाध्याय प्रारंजः॥ . ॥दोहा॥ ॥समकित विण नवमां फस्यो, काल अनंता जंत ॥ पंचप्रमादबलें करी, आठे कर्म महंत ॥१॥ नर नव सुणतुं श्रुततर्पु, सद्दहणा तिम चं ग॥ बल करवू धर्मे वली, ए चारे परमंग ॥२॥ चंडपान सुहणा तणो, ए हो संबंध ॥ कहुं श्रीगुरु सानिधिथकी, मूलदेव परबंध ॥३॥ .' ॥ ढाल पहेली॥ | | सारद बुद्धिदायी। ए देशी ॥ पामलिपुर नयरी; वयरी सविवश || कीध ॥ शंखोजल गुणधर, नरपति शंख प्रसीध ॥ जयसिरि तस राणी, रूपें जित इंशाणी ॥ तससुत अतिसुंदर, मूलदेव गुणखाणी ॥ त्रुटक॥गु णखाणी जूवट विन्नाणी, असत्य तणी सहनाणी ॥ जिहां जेवू तिहां तेवू । दीसे, जिम जलधरनुं पाणी ॥ जूवट दहवट करवा हेते, तातें पूर करी तो ॥ बहु धनवंती स्वर्गहसंती, नयरी अवंती पहोतो॥१॥ ढाल ॥ गु टिकाने कंपटें, ते थयो वामनरूपी॥ गणिकामां माणिक, देवदत्त गुणकू पी॥ अति जीणा वीणा, वाहे तिम वली गाय ॥ गणिका तस गुणथी, तिम अनुरागिणी थाय॥त्रुटक॥ था अनुरागी नाव चांगी, वणिकमां सौजागी॥अचलनाम गाथापति धनपति, आव्यो तिहां वडजागीदान मान सतकारी सारी, गणिकाघर ते विलसे॥पण वामन देखी गणिकानु, अंतर हियडुं हीसे ॥शाढाला। अका कहे गणिका, सुण तुं निश्चल चित्त।। नज अचल धनीने, तज वामन निर्वित्तातव बोली गणिका, वामनकामन रूप ॥ ए अचल अचल परे, निर्गुण पञ्बर रूप ॥ त्रुटक॥ पनर रूपी अति अविवेकी, ए माहारे मन नावे ॥शेलडीनो दृष्टांत देखाडी, अक्काने सम जावे ॥अका ढक्कानीपरे लागी; मूलदेवने नाम||अनुचित स्थानक जाणी - - - - - -
SR No.010852
Book TitleSazzayamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1988
Total Pages425
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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