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दशदृष्टांतना उपनयनी सद्याय.
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ने अनुसरता ।। यद्यपि देव प्रजावें रयणां, सयल ग्रही ग्रही आवे॥ पण नय कहे धर्मविना नरजव ए, हास्यो वतीय न पावे ॥७॥इति ॥
॥दोहा॥ ॥ हवे एनो.उपनय कहुँ, सुणजो सहु नविलोक ॥ मा नव जव महोटो अडे, जिम सोवनधन रोक ॥१॥
॥ढाल वीजी। ॥ वात म काढो हो व्रततणी ॥ ए देशी ॥ सुविहित हित कर जंतुने, मारगने अनुसारी रे ॥ ते गुरुव्यवहारी समो, आगम रयण जंमारी रे | ॥१॥ सोनागी जन सांजलो ॥ पंचप्रकारे जाणीय, अंगज परि तस शि प्यारे ॥ धज परिजन पूजा लही, पामे परिगल विख्या रे॥शासोगाथा गम रयणां वेंचियां, पेटनराश्मूले रे ॥ ऊंचे पद चढ्या लोकमां, कोटि ध्वज नामें नूले रे ॥शासोणा तातें तेह कुशिष्य ते, अविनाजना डाक्या रे॥ परंपर घरथी काढिया, हाथै ग्रहीने हांक्यारे ॥ ४॥ सो॥ रंकपरें निज वांकथी, रुले चजगति संसारे रे ॥ ते पाग नावी शके, परंपरा घर वारें रे ॥ आगमरयण ग्रही सारें रे ॥५॥ सो ॥ एम हास्यो नरजव वसी, पुष्करपणे ते सहिये रे । धीर विमल कविराजने, नयसीसे एम कहिये रे ॥६॥ सो ॥ सर्व गाथा ॥ १७ ॥
॥दोहा।। ॥श्री आवश्यक चूर्णिने, अनुसार को एह ॥ पण उ पदेश पदें कह्यो, अन्य सरूपें एह ॥१॥
॥ढाल त्रीजी। ॥ नमो नमो मनक महामुनि ॥ ए देशी। तामलित्ति नगरें वसे, सा गरदत्त इति सेठ रे ॥ रयण राशि करी एकगे, लठि करे जसवेठ रे॥१॥ मानव जव मीठो लही, मूरख महियां महारो रे ॥ महोटो महिमा एह नो, मुगतितणो संचकारो रे ॥मा॥२॥ प्रवहण पूरी एकदा, रयण ही ते जाय रे ॥ प्रवहण रयणे जरी फरी, आवे जलनिधिमांय रे॥मा ॥३॥ प्रवहण नांग्यु तेहy, रयण गयां विरलारे ॥ फलग खही घर श्रावीयो, हियडे जुःख न समाश्रे॥माण ॥४॥रयणराशि तेणे शेठिए, ते जेम दोहिलो सहिये रे ॥ तेणीपरें नरनव हारियो, दोहितो वली व ली कहियें रेरामागायाजीव संसारी शेठियो, सुगुरु सुधर्मने नेकरे ।स मकित गुणवर रयणडे, पूर्षु पोत विवेक रे ॥मा॥६॥ संयम मारग
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