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________________ (ए) ॥ संमूर्बिमनु शरीरमान कहे. ॥ .. खेचर पंखीनुं तथा जुजपरिसर्पनुं धनुष्य पृथक्त्व 'शरीर जाणवू. । उरःपरिसर्पनुं योजन पृथक्त्व शरीर जाणQ. संमूर्बिम चतुष्पदनुं गाउ पृथक्त्व शरीरमान जाणवू. ॥ गज ॥ चतुष्पदनुं ब गाउनुं शरीर होय. मनुष्यनुं त्रण गाउनुं शरीर होय. जवनपति, व्यंतर, ज्योतिषी, वैमानिकमां सौधर्म ने ईशान ए बे देवलोक सुधीना देवतानुं सात हाथर्नु शरीर जाणवू. त्रीजे चोथे बहाथर्नु शरीर. पांचमे के पांच हाथर्नु शरीर. सातमे आग्मे चार हाथ; नवमे, दशमे,अग्यारमे, बारमे ए चार देवलोके त्रण हाथर्नु शरीर, 'नव अवेयके वे हाथर्नु शरीर. पांच अनुत्तर विमाने एक हाथर्नु. ए शरीरनुं मान जाणवू. २॥ आउखानुं मान कहे ॥ _ पृथ्वीकायर्नु बावीश हजार वर्ष, अप्कायर्नु सात
SR No.010850
Book TitleJiva Vichar Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages97
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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