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________________ समा. (५५) त्यां प्रथम शरीरना प्रमाणनो प्रकार कहे : अंगुल असंख लागो, सरीरमेगिंदियाण सवेसि ॥ जोयण सहस्स महियं, नवरं पत्तेय रुकाणं ॥ १७ ॥ ___ गामा ७ मीना बूटा शब्दना अर्थ. अंगुल-अंगुलना. | सहस्सं-हजार. असंख-असंख्यातमा. अहियं-अधिक. नागो-नाग जेटलुं. | नवरं-विशेष. सवेसि एगिदियाण=सर्वे एके- पत्तेय रुकाणं प्रत्येक वनस्पबिय जीवोनां. तिना. . जोयण-योजन. अर्थः- ( सवेसि एगिंदियाण सरीरं के ) सर्वे सूक्ष्म तथा बादर पृथ्वीकाय प्रमुख एकैछिय जीवोनां शरीरोनुं प्रमाण (अंगुल असंख नागो के०) अंगुलना असंख्यातमा नाग जेटलुं होय , (नवरं के०) पण एटली विशेषता बेजे (पत्तेय रुरकाणं के०) प्रत्येक वनस्पतिना शरीरनुं प्रमाण (जोयण सहस्सम हियं के ) एक हजार योजनथी कांश्क अधिक होय बे. ते समुजादिकने विषे उत्सेधांगुल प्रमाण हजार योजनना उंमा पाणीमां पद्मनाल होय तथा आ
SR No.010850
Book TitleJiva Vichar Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages97
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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