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________________ (३७) (कम्माकम्मग नूमि के ) कर्मचूमिमां उत्पन्न श्रयेला, अकर्मनूमिमां उत्पन्न थयेला तथा (अंत'रदीवा मणुस्सा य के०) अंतरछीपमा उत्पन्न अयेला ए त्रण प्रकारना मनुष्य होय . तेमां कृषिवाणिज्यादिक कर्मप्रधान नूमि ते कर्मचूमि कहीए. तेनूमिने विषे जे मनुष्य उत्पन्न थाय ने ते कर्मचूमिज कहेवाय ने. ते कर्मचूमि अढी छीपमां पंदर ने अने जेमां कृषि वाणिज्यादि कर्म नथी एवी अकर्मचूमि त्रीश ने, तथा अंतरछीप बप्पन जे ते आ प्रमाणे:एजंबुद्वीपना मध्यजागे मेरु पर्वत . ते मेरुथी दक्षिण दिशे लवण समुज्ने लगतुं लवण समुनी उत्तर दिशे नरत क्षेत्र नेते कर्मचूमिज जे तथा ते जरत क्षेत्रने उत्तर दिशिने बेडे हेमवंत पर्वत बे, ते पर्वत मूकी तेनी उत्तर दिशिमां हिमवंत नामे युगलियार्नु केत्र बे,अने वली मेरुथी उत्तर दिशेलवण समुनने लगतुं समुपनी दक्षिण दिशे ऐरवत क्षेत्र नेते कर्मचूमिज 'ले. ते ऐरवतनी दक्षिण दिशिने बेडे शिखरी नामे पर्वत बे, ते पर्वत सूकीने तेनी दक्षिण दिशे एक हिरण्यवंत नामे युगलियानुं क्षेत्र डे एटले पूर्वे . कहेला एक हिमवंत अने बीजुं हिरण्यवंत ए बे .
SR No.010850
Book TitleJiva Vichar Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages97
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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