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________________ ७० प्रेमी-अभिनदन-प्रय प्रयुक्त हुआ है, और जिस प्रकार शालिहोत्र शब्द वैयक्तिक नाम का सूचक है, उसी प्रकार पाल-काप्य सज्ञा एक ऐसे ऋपि की दी हुई है, जो हाथी के पालन आदि के सवध में अच्छे ज्ञानी और अधिकारी लेखक समझे जाते थे। इस प्रकार हम देखते है कि शालि-होत्र और पाल-काप्य जैसे साधारण गन्द भी किस प्रकार व्यक्ति-विशेप के सूचक शब्द वन सकते है। द्राविड भाषाओं में पाल शब्द हाथी और हाथी-दांत का सूचक है। इनमे इस शब्द के अनेक रूप मिलते है। इस बारे मे एक बात और जान लेनी है कि पाल-काप्य ऋषि का एक अन्य नाम करण-भू ( हथिनी का पुत्र) भी मिलता है, जिससे पता चलता है कि ऋषि के नाम का कुछ सवध हाथियो से अवश्य है। काप्य शब्द की व्युत्पत्ति श्री प्रबोधचद्र वागची ने अपने लेख मे दी है और उन्होने यह साफ दिखा दिया है कि कपि शब्द हाथी का भी सूचक है, कम-मे-कम हाथी के समानार्थक शब्द के रूप में उसका प्रयोग मिलता है। डा० बागची ने गज-पिप्पली गन्द के लिए करि-पिप्पली, इभ-कण, कपि-वल्ली तथा कपिल्लिकामादि अनेक समानवाची शब्द दिये है, जिनमें गज, करि, इभ तथा कपि गन्द निस्सदेह एक ही अर्थ के बोधक है। जगली कथा का एक नाम कपित्य (मिलायो अश्वत्य =पीपल) पाया जाता है। इस फल को हाथी वडे शौक से खाते है सौर सस्कृत में एक लोकोक्ति है-ज-भुक्त कपित्यवत् (=एक ऐसे कपित्य फल के समान, जिसे हाथी ने खाया हो। यह कहा जाता है कि जब हाथी कपित्य फल को निगल लेता है तब उस फल का ऊपरी कडा गोला वैसे-का-वैसा ही बना रहता है और फल का गूदा हाथी के पेट में चला जाता है। इस प्रकार फल का ऊपरी ढक्कन ही वाहर रह जाता है।) क्या इस बात से हम यह कह सकते है कि कपित्य का कपि शब्द भी हाथी का सूचक है ? इस वात की पुष्टि इससे भी होती है कि कुछ पश्चिम एशियाई तथा आसपास के देशो की भापाओ-उदाहरणार्थ हिब्रू तथा प्राचीन मिस्री (Egyptian)-मे एक समानवाची शब्द हाथी के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है। हिन्दू में हाथीदांत के लिए शेन्-हव्वीम् (Shen-habbim) शब्द है। शेन का अर्थ 'दाँत' और हव्वीम का अर्थ 'हाथी' है यह शब्द हव्व् वन जायगा। प्राचीन मिस्री भाषा में हाथी के लिए हव् या हब्ब् शब्द है । हिब्रूतथा मिस्री गव्दी-हव्व् और हव की तुलना कपि शब्द से की जा सकती है। कपि-हव शब्द का मूल अज्ञात है। सभवत यह उसी प्रकार का है, जैसे घोट-धुत्र-कुतिर-हतर-गदैरोस्-कातिर शब्द । मेरा यह अनुमान है कि पाल-काप्य द्राविड तथा भारत-बहिर्भूत और किसी अनार्य भापा के दो पदो से मिलकर बना हुआ एक अनुवादमूलक समस्त-पद है, असगत न ठहरेगा। (४) गोपथ ब्राह्मण मे दन्तवाल घोन नामक एक ऋषि का उल्लेख है, जो जन्मेजय के समकालीन थे। यह नाम दन्ताल धीम्य से भिन्न है, जो जैमिनीय ब्राह्मण मे जनक विदेह के ममकालीन कहा गया है। घौम्र अपत्य नाम है, पर दन्तवाल शब्द का, जो कि एक वैयक्तिक नाम है, क्या अर्थ हो सकता है ? क्या यह दन्त-पाल के लिए प्रयुक्त हुआ है, जो दूसरा दन्ताल नाम है ? उसका अर्य'लवे या वडे दांतो वाला' हो सकता है। पर वाल/पाल प्रत्यय ('जो रखने वाला' या 'पालने वाला' के अर्थ को सूचित करता है) भारतीय आर्य-भाषा के इतिहास में अपभ्रश वाली स्थिति के पहले नहीं पाया जाता । अत वह बहुत प्राचीन नही है। मेरा अनुमान है कि दन्त-वाल शब्द दन्त-पाल के लिए ही प्रयुक्त हुआ है और आर्य तथा द्राविड भापानी में एक-एक पद मे मिल कर वना हुन्मा समस्त-पद है, जिसका अर्थ हायी या हाथी का दाँत है। इसमें न्त सस्कृत शब्द है, और पाल द्राविड । (५) भारतीय इतिहास के शक-काल मे अनेक शक (तथा अन्य ईरानी) नाम और विरुद को के द्वारा 'इस सवध में विशेष जानकारी के लिए देखिए-J_Przyluski, Notes Indrennes, Journal Asiatique, 1925, pp 46-57 am sit stateras amet * Indian Historical Quarterly, 1933. Pp 258 में प्रवध। 'डा. हेमचद्रराय चौधुरी का मै कृतज्ञ हूँ जिन्होने मेरा ध्यान इन नामों की ओर आकर्पित किया है।
SR No.010849
Book TitlePremi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremi Abhinandan Granth Samiti
PublisherPremi Abhinandan Granth Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size34 MB
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