SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 90
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भारतीय आर्य-भाषा में बहुभाषिता ६६ है। हिन्दुस्तानी मे यह शब्द शारोतरी या सालोतरी लिखा जाता है। शालिहोत्र गब्द द्वन्द्व है, और इसके दोनो शब्द भिन्न-भिन्न बोलियो के होते हुए भी एक ही अर्थ के सूचक है। संस्कृत शब्द शालि का, जिसका अर्थ चावल है, मूल दूसरा है। यहाँ शालि-होत्र का शालि शब्द निस्सदेह वही है, जो हमें शालि-वाहन मे मिलता है। शालि का दूसरा पाठ सात (सातवाहन) में भी मिलता है। भा पशेलुस्कि (Jean Przyluski) ने यह सिद्ध किया है कि शालि या सात शब्द प्राचीन कोल (प्रॉस्ट्रिक) का शब्द है, जिसका प्रयोग घोडे के अर्थ मे होता है (सयाली भापा मे इमे साद्-ओम्, सादोम वोला जाता है)। प्राचीन भारत की चालू वोलियो मे साद या सादि (घोडा) के प्रयुक्त होने का प्रमाण सस्कृत शब्द साद (घोडे की पीठ पर) वैठना या चढना' में मिलता है। इसके अन्य स्प सादि, सादिन्, सादित् (मिलायो प्रश्व-सादि-घोडे पर चढने वाला) भी मिलते है। यही गन्द निम्मदेह शालि-वाहन, सात-वाहन तथा शालिहोत्र के माथ जुड़ा हुआ है । अत यह स्पष्ट है कि शालि शब्द, जिसका अर्थ अश्व है, मूलत ऑस्ट्रिक भाषा का शब्द है। होत्री, होत्र गब्द का अर्थ भी मभवत यही होगा। यह शायद एक ऐया शब्द है, जिसे हम द्राविडो के साथ सवधित कर मकते है। घोडे के लिए इदो-यूरोपीय शब्द जो सस्कृत में मिलता है, वह अश्व ही है। बाद में , अश्व के लिए घोट शब्द भी प्रयुक्त होने लगा, जिसका मूल अज्ञात है। भारत के उत्तर-पश्चिम सीमान्त की पिगाच या दरद भापानो मे एक या दो को छोडकर भारत मे अश्व शब्द का प्रयोग अन्यत्र नहीं पाया जाता। घोट तथा उससे निकले हुए अन्य शब्द, जो अश्व के लिए प्रयुक्त होते है भारतीय आर्य तथा द्राविड भापायो में पाये जाते है। घोट गब्द मूलत प्राकृत का मालूम होता है। इसके प्राचीन रूप घुत्र और घोत्र थे। इन स्पो मे द्राविड भाषा के अश्व-वाचक शब्द काफी मिलते-जुलते है। उदाहरणार्थ, तामिल कुतिर, कन्नड फुदुरे, तेलगु 'गुरी-म। घुत्र, घोट तथा कुतिर शब्दों का मूल अनिश्चित है, पर ये काफी प्राचीन गब्द है और इनका प्रचलन पश्चिम-एगिया के देशो में बहुत अधिक है। घोडे के लिए प्राचीन मिस्त्री (Egyptian) भापा का एक शब्द, जो निस्सदेह एशिया (एगिया-माइनर या मैमोपोटेमिया) से आया है हतर (htr) है, जो घुत्र का एक दूसरा स्प प्रतीत होता है। गधे के लिए आधुनिक ग्रीक शब्द गरोस् (gadaros) तथा खच्चर के लिए तुर्की शब्द कातिर (Katyr) घुत्र-हतर शब्द मे ही मवधित जान पडते है । इस स्थान पर हम इस शब्द को भारत से बाहर का (एशिया-माइनर का ?) यानी अनार्य भापा का कह सकते है, जिसे सभवत द्राविड लोग यहाँ लाये । हो सकता है कि यह असली द्राविड शब्द है और यह भी विचारणीय है कि स्वय द्राविड शब्दो की मूल उत्पत्ति शायद भूमध्यमागर के आसपास या क्रीट द्वीप से हुई। शालिहोन शब्द के दूसरे पद में घोट का प्राचीन रूप घोत्र का विकार होत्र भी दिखाई पडता है। शालिहोत्र अश्वघोडे के लिए प्रयुक्त ऑस्ट्रिक शब्द साद+उसका समानार्थी द्राविड शब्द घोत्र । इस दशा में अश्व-सादि शब्द आर्य तथा प्रॉस्ट्रिक भाषाओ का सम्मिलित अनुवादमूलक समस्त-पद होगा। (३) पिछले मस्कृत-साहित्य में पालकाप्य मुनि का नाम हाथियो को शिक्षित करने के सवध मे लिखे हुए एक नथ के प्रणेता के रूप में आता है। उसके सवध में कुछ कथाएं भी मिलती है, जिनसे पता चलता है कि वे अग्रेजी औपन्यासिक रडियर्ड किपलिंग (Rudyard Kipling)द्वारा वर्णित एक प्रकार के मावग्ली (Mowglie) थे, मावग्ली ऐसा लडका था, जो कि वचपन से लक्कडवाघो के द्वारा पालित हुआ था, और पालकाप्य का भी हाथियो द्वारा पालन हुआ था, और वे हाथियो के बीच में रहा करते थे। पालकाप्य नाम की व्याख्या इस प्रकार दी गई है कि पाल वैयक्तिक नाम है और काप्य गोत्र का नाम है। काप्य की उत्पत्ति कपि से हुई है, जिसका सस्कृत में प्राय बदर के लिए प्रयोग होता है। परन्तु जान पडता है कि पालकाप्य एक अनुवादमूलक समस्त-पद है, जो बिलकुल शालि-होत्र शब्द के ही समान वना है। पालकाप्य के दोनो शब्द दो भिन्न भाषामो से लिये गये है और प्रत्येक शब्द हाथी के लिए 'देखिए JRAS , 1929, 2 273
SR No.010849
Book TitlePremi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremi Abhinandan Granth Samiti
PublisherPremi Abhinandan Granth Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size34 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy