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________________ संस्कृत-साहित्य में महिलाओं का दान डा० यतीन्द्रविमल चौधरी वर्तमान युग मे महिलाओ की प्रगति के बारे मे यो तो सभी सचेष्ट है, परन्तु महिलाएँ विशेषरूप से सचेष्ट है । वे शिक्षा, दीक्षा एव सब विषयो में ऊँचे से ऊँचे प्रादर्श को प्राप्त करना चाहती है और इसके लिये कितनी ही महिलाओ ने काफी यत्न भी किया है। उन्होने सिर्फ ऊँची शिक्षा ही नही प्राप्त की है, बल्कि नाना विषयो के ग्रन्थो की रचयित्री होने का श्रेय भी उन्हें प्राप्त हैं । स्त्री-शिक्षा का उच्च आदर्श हिन्दुस्तान में कोई नया नहीं है । वैदिक युग से ही भारतीय महिलाएँ इस आदर्श से अनुप्राणित होती श्रा रही है। वैदिक युग में महिलाओ ने सब तरह से मामाजिक जीवन मे जो उच्च स्थान प्राप्त किया था, उसके बारे में कुछ-न-कुछ प्राय सभी लोग जानते हैं । इम छोटे-से लेख मे वर्तमान युग की महिलाओ के विषय में कुछ बतलाने की कोई चेप्टा हम नही करेगे । प्रतीत काल मे भी स्त्रियाँ सिर्फ उच्च शिक्षिता ही नही थी, बल्कि वे बहुत से ग्रन्थो की रचयित्री भी थी । सम्भव है कि इनका इतिहास भी किसी को मालूम न हो । इन सब सस्कृत ग्रन्थो की हस्त लिखित पोथियाँ भारत के विभिन्न स्थानो - पुस्तकालयों, व्यक्ति विशेषो के हाथो, मठो और मन्दिरो मे विक्षिप्त रूप से छिपी पडी है। इनमें से कितनी ही काल-स्रोत से नष्ट-भ्रष्ट भी हो गई है । इसके अलावा कुछ पोथियाँ भारत के बाहर भी चली गई है। फिर भी काव्य, पुराण, स्मृति, तन्त्र आदि विषयों में खोज करने से उनके जो पाण्डित्यपूर्ण ग्रन्थ प्राप्त हुए हैं, उनका भी कुछ कम मूल्य नही है । इन ग्रन्थो से ही प्राचीन कालीन भारतीय महिलाओ की बहुमुखी प्रतिभा का कुछ-कुछ आभास हम पाते हैं । मस्कृतसाहित्य मे भारतीय नारियो का जो दान अवशिष्ट है, उससे भी इस साहित्य में एक नवीन शाखा की सृष्टि की जा सकती है, जो श्राज तक अज्ञात ही पडी हुई है। काफी अनुसन्धान के बाद भारतीय महिलाओ की जो संस्कृत - रचनाएँ हम संग्रह कर सके हैं, उन्हें भी हम क्रमश प्रकाशित करेगे। उनके कितने ही ग्रन्थो का सक्षिप्त विवरण यहाँ हम देंगे । दृश्य-काव्य-नाटक आदि महापण्डित घनश्याम की सुन्दरी और कमला नामक दो विदुषी पत्नियो ने कवि राजशेखर के प्रसिद्ध 'विद्धशाल-भजिका' पर एक अत्यन्त सुन्दर श्रीर पाण्डित्यपूर्ण टीका लिखी है। इस टाका का नाम है 'सुन्दरीकमली' या 'चमत्कारी -तरगिणी' । उनके पति घनश्याम ने भी इसी 'विद्वशालभजिका' पर 'प्राणप्रतिष्ठा' नामक एक सक्षिप्त टोका लिखी है । सुन्दरी और कमला की बोधशक्ति अपूर्व, भाषा शुद्ध और विचारदक्षता अतुलनीय है । उन्होने पहले के टीकाकारो की समालोचना ही नही की है, बल्कि कालिदास, भवभूति, अमरसिंह, विशाखदत्त आदि महामनस्वियों की कठोर आलोचना करने से भी वे विचलित नही हुई है । यह तो स्वीकार करना ही पडेगा कि बहुत-सी जगहो में उनकी आलोचना उपयुक्त भी है। उक्त टीका मे कितने ही स्थलो पर अपने मत की पुष्टि के लिए उन्होने अलकार-अन्य, अभिधान, व्याकरण आदि से प्रमाण उद्धृत किए है । इन ग्रन्थो का अधिकाश भाग बहुत पहले दुनिया से लुप्त हो गया है । श्राव्य-काव्य और महाकाव्य आदि श्राव्य-काव्य में महिलाओ के दान के सम्बन्ध में जो कुछ पाया गया है, उसे दो हिस्सो मे बाँटा जा सकता है(१) विभिन्न विषयो पर छोटी-छोटी कविताएँ थोर ( २ ) सम्पूर्ण काव्य |
SR No.010849
Book TitlePremi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremi Abhinandan Granth Samiti
PublisherPremi Abhinandan Granth Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size34 MB
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