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________________ बुन्देली लोक-गीत २-अरे जात बजारे, छैला अरे जात वजारें, छैला! मोरे जात बजारें, छला लाल ! सो लेन अनोखे वैला, मोरे जात वजारें, छैला लाल ! कन्त बजार जात हो, कामन कह कर जोर एक अरज सुन लीजियो, कन्त मानियो मोरलीला है रग अति जबर जग प्रोगन न अग एकऊ वा के रोमा मुलाम पतरो है चाम चाहे लगे दाम कितने हु वा के सो लिइए असल पुखला मोरे जात वजारें, छैला, लाल ! भौरा रग वाकुडा चचल पोछे फानन खेला मोरे जात वजारे छला, लाल ! हसा से वैल न लिइए छेल न दिइए पैल अगरे वा के कजरा की शान ले लिइए जान दैदिइए दाम चित में दै के पुठी उतार घींच पतरी को न लिइए विगरला सो प्रोछे कानन खेला मोरे जात वजारे छला, लाल ! करिया के दन्त जिन गिनी, कन्त हठ चलो अन्त मानो बिनती ७८
SR No.010849
Book TitlePremi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremi Abhinandan Granth Samiti
PublisherPremi Abhinandan Granth Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size34 MB
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