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________________ ६१६ प्रेमी-प्रभिनदन-प्रथ १-धनसिंह का गीत तोरी मत फौने हरी धनसिंघ, तोरी, मत कौने हरी? छीकत बछेरा पलानियों,' बरजत भये असवार जातन भारौं गौर खौं, गढ़ एरछ के मैदान तोरी मत कौने हरी धनसिंघ, तोरी मत कोने हरी? माता पफरें फैटरी', वैन', घोडे की बाग रानी बोलेधनसिंह की, मोए कोन की करके जात तोरी मत कौने हरी धनसिंघ, तोरी मत कौने हरी? माता खो गारों वई, वैदुल खी दयो ललकार 'बैठी जो रहियो रानी सतखण्डा, मोतिन से भरा देऊ मांग !' तोरी मत कोने हरी, धनसिंघ, तोरी मत फौने हरी ? डेरी' बोली टीटही दाइनी' बोली सिहार" सिर के साम" तीतर बोले, 'पर भ में मरन काएं जात ?" तोरी मत कौने हरी, धनसिंघ, तोरी मत कोने हरी ? कोऊ जो मेले ढेरी ढेरा, कोऊ जिल्ला के वाग जा मेले धनसिंघ ज, जाळे फसव" के पाल" तोरी मत कौने हरी, धनसिंघ, तोरी मत कोने हरी? पैले मते भये ओरछे," दूजे वरुया के मैदान तीजे मते भये पाल में, सो मर गये कुंवर धनसिंघ तोरीमत कोने हरी, धन संघ, तोरी मत फौने हरी ? भागन लगे भागेलुमा, उड रई गुलावी धर रानी देखे धनसिंह की, घोरो पा गयो उबीनी पीठ" तोरीमत कौने हरी, धनसिंघ, तोरी मत कौने हरी ? काटौं बछेरा तोरी वजखुरी", मेटौं कनक और दार" मेरे स्वामी जुझवाय के, ते प्राय बंधो घुरसार तोरी मत कौने हरी, धनसिंघ, तोरी मत कोने हरी ? 'कायखौं काटो, रानी, बजखुरी, काय मेटी कनक औदार? दगा जो होगपाल में मोपै होनेई न पाए असवार" तोरीमत कौने हरी, धनसिंघ, तोरी" मत कोने हरी ? 'पलानकसा 'कमरबन्द 'बटन 'गालियां 'बहन 'मोतियों से 'बाई ओर ‘टिटिहर 'दाई ओर "सियार "सामने "पराई भूमि पर मरने के लिये क्यों जाते हो? "एक वर । विशेष "तम्बू "पहली सलाह ओरछे में हुई। "घोडा खाली पीठ के साथ पा गया। "हे बछरे, ते । खरियो के ऊपरी भाग काट डालूं। गेहूँ और दाल (वाना) देना बन्द कर दूं। तम्बू में धोखा हुमा । " वे मुझ पर सवार ही न हो पाए थे। "धनसिंह, तेरी बुद्धि किस ने हर ली ?
SR No.010849
Book TitlePremi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremi Abhinandan Granth Samiti
PublisherPremi Abhinandan Granth Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size34 MB
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