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________________ ४७६ प्रेमी-अभिनदन-प्रथ अर्बुद-मेदपाट-मरुवरेंद्र-यमुना-गा तीर-प्रतर्वेदि-मागध-मध्य कुरु-डाहल-कामरूपकाचीअवती-पापातक-किरात-सीवीर-प्रौसीर-वाकाण-उत्तरा पथ-गुर्जर-सिंधु-केकाण-नेपाल टक्क -तुरुस्क-लाइकार-सिंघल--चौड-कोशल-पाडु--अन्ध्र-विध्य---कर्णाट-द्रविण-थीपर्वत-वर्वर ----जर्जर-कीर-काश्मीर-हिमालय-लोहपुरुप-श्रीराष्ट्र-दक्षिणापथ-विदर्भ-धाराउर-लाजी-तापी, -महाराष्ट्र-भाभीर-नर्मदातट-दी (द्वी) पदेशाश्चेति । ___ इसके पश्चात इस ग्रथ मे कई देश एव नगरो के ग्राम सख्यादि का भी निर्देश किया है। (देखें, पाटण भडार सूची पृ० ४८-४६)। स० १४७८ मे माणिक्यसुन्दरसूरि रचित पृथ्वीचद्र चरित्र में भगवान ऋषभदेव के ६८ पुत्रो के नाम से प्रसिद्ध हुए ६८ देशो के नाम की सूची इस प्रकार दी है काश्मीर, कीर, कावेर, काम्बोज, कमल, उत्कल, करहाट, कुरु, क्वाण, ऋथ, कोगक, कोशल, केशी, कारुत, कारुख, कछ, कर्नाट, कीकट, केकि, कौलगिरि, कामरू, कुकण, कुतल, कालिंग, करकूट, करकठ, केरल, सम, खर्पट, खेट, गोड, अग, गोण्य, गागक, चौड, चिल्लिर, चैत्य, जालघर, टकण, कोणियाण, गहल, तुग, नाज्जिक, तोमल, दशार्ण दडक, देवसम, नेपाल, नर्तक, पचाल, पल्लव, पुड़, पाडु, प्रत्यगथ, अर्बुद, वभ्रु, बभीर, भट्टीय, माहिप्यक, महोदय, मुरुड, मुरल, मेद, मरु, मुद्गर, मकन, मल्लवर्त, महाराष्ट्र, यवन, रोम, शटक, लाट, ब्रह्मोत्तर, वह्मावर्त्त, ब्राह्मणावाहक, विदेह, वग, वैराट, वनवास, वनायुज, वाहलीक, वल्लव, अवति, वह्नि, शक, सिंहल, सुम्ह, सूर्पग्वु, सौवीर, सुराष्ट, सुरड, अस्मक, हूण, हर्मोक, हर्मोज, हस, हुहुक, हेरक जैनागमो मे नगर एव ग्रामो का उल्लेख जैनागमो मे देशो के नाम के अतिरिक्त उन देशो के मुख्य नगर एव ग्रामो का भी अच्छा वर्णन पाया जाता है। कई नगरो के वनखड उद्यान, यक्षमदिर आदि जहां कि जैनमुनि रहते थे, उनका भी वर्णन किया गया है। पूरी खोज करने पर इस विषय मे बहुत कुछ नवीन ज्ञातव्य मिल सकता है, यहां तो यथाज्ञात थोडे से नामो का सग्रह किया जा रहा है। कई नगरो के उल्लेखो मे तत्कालीन राजाओ' का भी उल्लेख है। भगवतीसूत्र श्रावस्ती (कोष्टक चैत्य), कृतगला (छत्रपलाशचत्य), ताम्रलिप्ति (वेभेल सन्निवेग), सुसुमारनगर (अशोक वनखण्ड), वाणिज्यग्राम (दूतिपलाशचत्य), हस्तिनापुर (सहस्रादन उद्यान, शिवराजा, धारणी राणि गिविभद्रकुमार), कौशाम्बी (चन्द्रावतरणचैत्य-उदायी राजा, शतानिक का पुत्र-मृगावत राणी), वीतभयपत्तन (सिंधु-सौवीर देश-मृगवन उद्यान-उदायन राजा, प्रभावती रानी, अमिचीकुमार पुत्र, केशीकुमार-भानजा), उल्लुकतीर (जवूक चैत्य), राजगृह (गुणशील चैत्य, मडिकुक्षि चैत्य), चपानगरी (पूर्णभद्र चैत्य, अगमदिर, कौणिक राजा), वैशाली (कुडियायन चैत्य, चेटक राजा), ब्राह्मण कुड (बहुशालक चैत्य), क्षत्रियकुण्ड, तुगिया नगर। (पुष्यवती चैत्य), पालभिका (सखवन, प्राप्तकाल चैत्य), उद्दण्डपुर (चन्द्रावतरण चैत्य) वाराणशी (काममहावन), काकदी नगर, मेढियाग्राम (साणकोष्टक चैत्य) कूर्मग्राम, अस्थिग्राम, कोलाकसन्निवेश (नालदा के पास) मोका नगरी (नदन चैत्य), नालदा (राजगृह के वाहर), सिद्धार्थनाम, कर्मारग्राम, पणियभूमि, विशाला (बहुपुत्रिक चैत्य)। उपरोक्त सभी ग्रामनगरो का निर्देश भगवतीसूत्र से सकलित किया गया है। इनके अतिरिक्त आचारागसूत्र मे लाटभूमि, वनभूमि, शुभ्रभूमि के नाम आते है । ज्ञातासूत्र में शुक्तिमती, हस्तिशीर्प, मथुरा, कौडिन्यनगर, 'जैसे ठाणागसूत्त के वेस्थानक में १ वीरागक, २ वीरजस, ३ सजय, ४ ऐणेयक, ५ श्वेत, ६ शिव, ७ उदायन और ८ शख इन ८ राजाओं को तो भगवान महावीर ने दीक्षित किया लिखा है।
SR No.010849
Book TitlePremi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremi Abhinandan Granth Samiti
PublisherPremi Abhinandan Granth Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size34 MB
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