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________________ ४६० प्रेमी-अभिनदन-प्रथ "पोइम् ।। श्लोक ॥ यच्चित्सागरमग्ना जीवाचा भाव भूतयो विविधास्त भगवन्त ' रागारं नत्वावि लिख्यते । पत्रम् ॥ स्वस्ति श्री मदन-वरत भक्ति-भारावनत पुरन्दर वृन्द वन्दित सुन्दर वर सुर सुन्दरी विवाह मडपाय-मानघन-घण्टाध्वजाचमर सिंहासनादिपरिमण्डित जिनेन्द्रचन्द्र मन्दिरसन्दर्भ पवित्रितघरातले वापी कूप तडाग सरित्सरोवर खातिका प्रकारादि परिकर परिवेष्टिते महाशुभस्थाने श्री इत्यादि ।" अन्त निम्नाकित दोहो से किया गया है "पाप गलत शुभ-रमन-कर, जिन-वृष वृषभ मयफ। नुति स्तुति करि दल क्षेम कर, मगल प्रत निशक ।। जनपद गुड निवासिनी, कमल वासिनी जेम। महारानी विकटोरिया, जयो सयोग क्षेम ॥ तत्व ज्ञान निधि भमि, शशि प्रतिपद भोर वैशाख । कृष्न पक्ष में स्वक्षता, आय करो वृष साख ॥" यह पत्र सुनहरी स्याही से लाल घोटे के कागज पर छपा हुआ है, जिस पर सुन्दर बोर्डर और ऊपर मदिर का चित्र वनाहुआहै । प्रेस मे छपा हुआएक निमत्रणपत्र स०१६६१ का तिरवा (जिला फर्रुखाबादमें कलसोत्सव एव रथयात्रा प्रसग का है । प्रारभिक श्लोक द्रष्टव्य है "न कोपो न लोभो न मानो न माया न हास्य न लास्य न गीत न कान्ता। न वायुस्य पुत्रान शत्रु मित्रो-स्तुनुर्देवदेवं जिनेन्द्र नमामि ॥१॥ प्रणम्य वृषभदेव सर्वपाप प्रणासन । लिखामि पत्रिका रम्या सत्समाचार हेतवे ॥२॥" यह पत्रिका स० १९६१ में तिरवा में जैनधर्म के बाहुल्य को प्रकट करती है, किन्तु आज वहाँ केवल एक जैन उस विशाल जैनमदिर की व्यवस्था के लिए शेप है, जिस पर कलस चढाये गये थे। श्री जैन मदिर अलीगज के सग्रह में दिल्ली के रथोत्सव की सचित्र पत्रिका लिथो की छपी हुई है, जिसमे जूलुस का पूरा चित्रण है । यह वह पहली रथयात्रा थी, जो वैष्णवो के विरोध करने पर भी सरकारी देख-रेख में दिल्ली में निकली थी। इस प्रकार की निमत्रणपत्रिकामो की यदि खोज हो तो इनसे भी प्राचीन और मूल्यवान पत्रिकाएँ मिल सकती है। तीर्थमाला-अथ भी इतिहास और भूगोल के लिए महत्त्व की चीजें है। प्राचीनकाल में जव यातायात के साधन नहीं थे तब सघपति किसी आचार्य के तत्वावधान में लवी-लवी तीर्थयात्राओं के लिए संघ निकाला करते थे। उनतीर्थयात्रामो के निकले हुए सपो का विवरण कतिपय विद्वानो ने लिखा है। श्वेताम्बर जन-समाज ऐसी तीर्थमालाप्रो का सग्रह कई स्थानो से प्रकाशित कर चुका है। फिर भी कई ग्रथ अप्रकाशित है। दिगम्बर जैनो के शास्त्रभडारो की शोध अभी हुई ही नहीं है और यह नहीं कहा जा सकता कि उनमें ऐसी कितनी तीर्थमालाएँ सुरक्षित हैं। अलीगज और मैनपुरी के शास्त्रभडारो में हमें तीन-चार तीर्थयात्रा विवरण मिले है। एक सघ श्री धनपतिराय जी रुइया ने मैनपुरी से शिखरजी के लिए निकाला था, उसका विवरण मिलता है। दूसरा विवरण गिरनार जी की यात्रा का पानीपत के सघ का है। तीसरा विवरण कम्पिला तीर्थ की यात्रा का है, जो प्रकाशित किया जा चुका है।' किन्तु इन तीर्थयात्रामो के विवरण के अतिरिक्त जैन साहित्य में कुछ ऐसे भी ग्रन्थ है, जिनमें तीर्थों का परिचय और 'पूर्व प्रमाण द्रष्टव्य । जनसिद्धान्तभास्कर भा०४, पृ० १४३-१४८ । 'श्री कम्पिल रथयात्रा विवरण (मैनपुरी) पु. १५-२४। .
SR No.010849
Book TitlePremi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremi Abhinandan Granth Samiti
PublisherPremi Abhinandan Granth Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size34 MB
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