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________________ स्याद्वाद और सप्तभगी ३४१ सप्तभगी के मूल-आधार चार भगो का स्पष्टीकरण यह सप्त भगी सुनने वाले को कुछ व्यर्थ सी जचती है, किन्तु प्रतिदिन बोलचाल की भाषा में हम जो शब्द व्यवहार करते है, यह उसी का दार्शनिक विकास है । यहा हम गुरु शिष्य के प्रश्नोत्तर के रूप में उस पर प्रकाश डालते है। गुरु-एक मनुप्य अपने सेवक को आज्ञा देता है-'घट लाओ' तो सेवक तुरन्त घट ले आता है और जब वस्त्र लाने की आज्ञा देता है तो वह वस्त्र उठा लाता है, यह आप व्यवहार में प्रति दिन देखते है, किन्तु क्या कभी आपने इस वात पर विचार किया है कि सुनने वाला घट शब्द सुन कर घट ही क्यो लाता है, और वस्त्र शब्द सुन कर वस्त्र ही क्यो लाता है ? शिष्य-घट को घट कहते है और वस्त्र को वस्त्र कहते है, इसलिए जिस वस्तु का नाम लिया जाता है सेवक उसे ही ले आता है। गु०-घट को ही घट क्यो कहते है ? वस्त्र को घट क्यो नही कहते ? शि०-घट का काम घट ही दे सकता है, वस्त्र नहीं दे सकता। गु०-घट का काम घट ही क्यो देता है ? वस्त्र क्यो नही देता? शि०-यह तो वस्तु का स्वभाव है। इसमें प्रश्न के लिए स्थान नहीं है। गु०-क्या तुम्हारे कहने का यह आशय है कि घट मे जो स्वभाव है वह वस्त्र में नहीं है और वस्त्र मे जो स्वभाव है वह घट मे नही है ? शि०-हाँ, प्रत्येक वस्तु अपना जुदा-जुदा स्वभाव रखती है। गु०-ठीक है, किन्तु अब तुम यह बतलायो कि क्या हम घट को असत् कह सकते है । शि०–हाँ, घडे के फूट जाने पर उसे असत् कहते ही है । __ गु०-टूट-फूट जाने पर तो प्रत्येक वस्तु असत् कही जाती है। हमारा मतलव है कि क्या घट के मौजूद रहते हुए भी उसे असत् कहा जा सकता है ? शि०-नही, कभी नही। जो "है", वह "नहीं" कैसे हो सकता है ? गु०-किनारे के पास आकर फिर वहाव मे बहना चाहते हो। अभी तुम स्वय स्वीकार कर चुके हो कि प्रत्येक वस्तु का स्वभाव जुदा-जुदा होता है और वह स्वभाव अपनी ही वस्तु मे रहता है, दूसरी वस्तु में नही रहता। शिo हाँ, यह तो मै अव भी स्वीकार करता हूँ। क्योकि यदि ऐसा न माना जायेगा तो प्राग पानी हो जायगी और पानी आग हो जायेगा । कपडा मिट्टी हो जायेगा और मिट्टी कपडा बन जायेगी। कोई भी वस्तु अपने स्वभाव में स्थिर न रह सकेगी। गु०- यदि हम तुम्हारी ही बात को इस तरह से कहें, कि प्रत्येक वस्तु अपने स्वभाव से है और पर स्वभाव से नही है, तो तुम्हें कोई आपत्ति तो नही है ? शि०-नही, इसमे किसको आपत्ति हो सकती है ? गु०-अब फिर तुमसे पहला प्रश्न किया जाता है, क्या मौजूद घट को असतू कह सकते है ? शि०-(चुप)। गुरु-चुप क्यो हो ? क्या फिर भी भ्रम में पड गये? शि०-परस्वभाव की अपेक्षा से मौजूद घट को भी असत् कह सकते है। गुल-अव रास्ते पर आए हो। जव हम किसी वस्तु को सत् कहते हैं तो हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि उस वस्तु के स्वरूप की अपेक्षा से ही उसे सत् कहा जाता है। पर वस्तु के स्वरूप की अपेक्षा से दुनिया की प्रत्येक
SR No.010849
Book TitlePremi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremi Abhinandan Granth Samiti
PublisherPremi Abhinandan Granth Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size34 MB
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