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________________ ૩૨૨ प्रेमी-अभिनदन-प्रय पगोरिजय ने एप सिर्फ दर्शन के विषय में ही लिखा हो यह बात नहीं। आगमिक अनेक गहन विषयो पीनान ना, अध्यान्नमात्र की चर्चा, योगशाल, अलकार और आचारशास्त्र को चर्चा करने वाले भी अनेक पाहिल्या प्रन्या की रचना करके जैनवाड्मय को उन्नत भूमिका के ऊपर स्थापित करके सर्वशास्त्रवैशारद्य का न दिया है। नदगंनमान्य वा नवीनन्याय का यह युग यशोविजययुग कहा जा सकता है, क्योकि अकेले यशोविजय के ही माहित मे उन यग का दागनिक नाहित्य भडार पुष्ट हुआ है। दूसरे विद्वानो ने कुछ छोटी-मोटी गिनती की पुस्तको पी ग्नना दागंनियक्षम मे को है सही किन्तु यशोविजय-साहित्य के सामने उन सभी का मूल्य नगण्य है । यशस्वत्सागरादि इस युग म म० १७५७ में विद्यमान यशस्वनसागर ने सप्तपदार्या, प्रामाण्यवादार्थ, वादार्थनिरूपण, म्याद्वादगुलावली जैसे दार्गनिक गन्यो की रचना की। दिगम्बर विद्वान् विमलदास ने 'सप्तभगी तरगिणी' नामक ग्रन्थ का प्रणयन नवीन न्याय की शैली में दिया है। यगोविजयन्यापित परम्परा का इस वीमवी सदी में फिर से उद्धार हुना है। प्रा. विजयनेमि का मिप्यगण नवीनन्याय का अध्ययन करके यशोविजय के साहित्य की टोकारो का निर्माण करने लगा है। सामो] - - - - - - -
SR No.010849
Book TitlePremi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremi Abhinandan Granth Samiti
PublisherPremi Abhinandan Granth Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size34 MB
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