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________________ ३०४ प्रेमी-अभिनदन-प्रथ है इस बात को मानते हुए भी शैली और विषय वर्णन के आधार पर कहा जा सकता है कि आगमो का अधिकाश ईस्वी सन् के पूर्व का होने मे सन्देह को कोई अवकाश नही । जैनदार्शनिक साहित्य के विकास का मूलाधार ये ही प्राकृत भाषा निवद्ध आगम रहे है । अतएव सक्षेप मे इनका वर्गीकरण नीचे दिया जाता है १ अग- १ - आचार, २-~~-सूत्रकृत, ३ – – स्थान, ४ – समवाय, ५ – भगवती, ६– जातृधर्मकथा, ७ –– उपासकदणा, ८--अन्तकृदृशा, ε--- अनुत्तरोपपातिकदशा, १० - प्रश्नव्याकरण, ११ - विपाक, १२ - दृष्टिवाद ( लुप्त है ) । २ उभाग- १ – औपपातिक, २ -- राजप्रश्नीय, ३ - जीवाभिगम, ४ – प्रज्ञापना, ५- सूर्यप्रज्ञप्ति, ६ - जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, ७- चन्द्रप्रज्ञप्ति, ८—कल्पिका, ६– कल्पावतसिका, १० - पुष्पिका, ११ - पुप्पचूलिका, १२ - वृष्णि दशा । ३ मूल- १ –—–— ग्रावश्यक, २ दशवैकालिक, ३ – उत्तराध्ययन, ४ – पिंडनिर्युक्ति ( ४ – किमी के मत से प्रोघ निर्युक्ति) । ४ नन्दीसूत्र- ५ अनुयोगद्वारसूत्र- ६ छेदसूत्र - १ - निशीथ, २ - महानिशीथ, ३ – बृहत्कल्प, ४ - व्यवहार, ५ -- दशाश्रुतस्कन्ध, ६ – पचकल्प । ७ प्रकीर्णक १ – चतु शरण, २ – आतुरप्रत्याख्यान, ३ - - भक्तपरिज्ञा, ४ – सस्तारक, ५ – तन्दुल वैचारिक, ६– चन्द्रवेध्यक, ७ —— देवेन्द्रस्तव, गणिविद्या, ६ - महाप्रत्यास्यान, १० - वीरस्तव । इन सूत्रो में से कुछ तो ऐसे हैं, जिनके कर्त्ता का नाम भी उपलब्ध होता है जैसे- दगवैकालिक गय्यभवकृत है, प्रज्ञापना श्यामाचार्य कृत है । दशाश्रुत, बृहत्कत्प और व्यवहार के कर्त्ता भद्रवाहु है । इन सभी सूत्रो का सम्वन्ध दर्शन से नही है । कुछ तो ऐसे हैं, जो जैन आचार के साथ सम्बन्ध रखते है जैसे--- आचाराग, दशवैकालिक श्रादि । कुछ उपदेशात्मक है जैसे उत्तरात्ययन, प्रकीर्णक, आदि । कुछ तत्कालीन भूगोल और खगोल आदि सम्बन्धी मान्यताओ का वर्णन करते हैं, जैसे जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, सूर्यप्रज्ञप्ति आदि । छेदसूत्रो का प्रधान विषय जैनसाधुत्रो के प्रचारसम्बन्धी श्रौत्सर्गिक और आपवादिक नियमो का वर्णन व प्रायश्चित्तो का विधान करना है | कुछ ग्रन्थ ऐसे हैं, जिनमे जिनमार्ग के अनुयायियो का चरित्र दिया गया है जैसे उपासकदशा, अनुत्तरोपपपातिकदशा आदि । कुछ में कल्पित कथाएँ देकर उपदेश दिया गया है, जैसे ज्ञातृधर्मकथा आदि । विपाक मे शुभ और अशुभ कर्म का विपाक कथाश्री द्वारा बताया गया है । भगवतीसूत्र में भगवान् महावीर के साथ हुए सवादो का सग्रह है । वौद्ध सुत्तपिटक की तरह नाना विषय के प्रश्नोत्तर भगवती में सगृहीत है । दर्शन के साथ सम्बन्ध रखने वालो में खास कर सूत्रकृत, प्रज्ञापना, राजप्रश्नीय, भगवती, नन्दी, स्थानाग, समवाय और अनुयोग मुरय है । सूत्रकृत में तत्कालीन मन्तव्यो का निराकरण करके स्वमत की प्ररूपणा की गई है । भूतवादियों का निराकरण करके आत्मा का पृथग्-अस्तित्व बताया है । ब्रह्मवाद के स्थान में नानात्मवाद स्थिर किया है । जीव और
SR No.010849
Book TitlePremi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremi Abhinandan Granth Samiti
PublisherPremi Abhinandan Granth Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size34 MB
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