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________________ जैन दार्शनिक साहित्य का सिंहावलोकन श्री दलसुख मालवणिया प्रस्तावना भगवान् महावीर से लेकर अब तक के जैनदार्शनिक नाहित्य का सिंहावलोकन करना यहाँ इष्ट है। नमा साहित्य को विकाग्म की दृष्टि ने न चार युगो में विभक्त कर सकते हैं-(१) आगमयुग, (२) अनेकान्तस्यापनयुग, (३) प्रमाणगान्त्रव्यवन्या युग और (८) नवीनन्याययुग । युगो के लक्षण युग के नाम से ही न्यप्ट है। फिर भी थोडा काल की दृष्टि से स्पष्टीकरण आवश्यक है। प्रथम युग की मर्यादा भगगन् महावीर के निर्वाण (वि० पूर्व ४३०) ने लेकर करीव एक हजार वर्ष की है अर्थात् वि० पांचवीं शताब्दी तक है। दूसरा पांचवी ने पानी शताब्दी तक । तीनरा आठवी मे मत्रह्वी तक और चौथा अठाह्री ने प्रावुनिक स्मय-पर्यन्त । यहाँ इनना कह देना आवश्यक है कि पूर्व युग की विशेषताएँ उत्तर युग मे कायम रही हैं और उन युग का जो नया कार्य है उनी को ध्यान में न्वकर उन युग का नामकरण हुआ है। पूर्व युग में उत्तर युग का वीज प्रवच्य है; परन्तु पल्लवन नहीं। पल्लवन की दृष्टि मे ही युग का नामकरण हुआ है। ग्रन्यकारी का क्रम प्राय गताब्दी को ध्यान में रखकर क्यिा गया है। जहाँ तक हो सका है, यह प्रयत्न क्यिा गया है कि उनका पौपिर्य मुख्य रूप मे व्यान में रखकरही उनकी कृतियो का वर्णन किया जाय । दशको का विचार रखकर वर्णन मम्भव नहीं। आगम-युग के नाहित्य पर जो टीका-टिप्पणियाँ हुई है, उनका वर्णन मुभीते की दृष्टि ने उनी युग के वर्णन के माय कर दिया है, यद्यपि ये टीकाएँ उस युग की नहीं हैं। समा माहित्य के अवलोकन ने यह पता लगता है कि जैनदार्गनिक माहित्यगगा इन पचीस शताब्दियो में नवन प्रवाहित रही है। प्रवाह कभी गम्भीर हुअा, कभी विस्तीर्ण हुआ, कभी मन्द हुआ, कभी तेज हुआ, किन्नु रुका कमी नही। (१) आगमयुग भगवान् महावीर ने जो उपदेन दिया, वह आज श्रुतल्प में जैन-आगमो में सुरक्षित है। प्राचार्य भद्रवाहु ने श्रुत की उत्पत्ति का वर्णन करते हुए एक सुन्दर पक का उपयोग किया है -"तप-नियम-जानन्प वृक्ष के ऊपर आन्दु होकर अनन्नाती केवली भगवान् भव्यजनो के हित के लिए जानकमुम की वृष्टि करते है। गणवर अपने वृद्धि-पट में टन नकल कुनुमो को झेलने हैं और प्रवचनमाला गूयते है।" यही प्रवचन-नाला आचार्य परम्परा से, कालक्रम मे, हमे जैनी भी ट्टी फूटी अवस्था में प्राप्त हुई है, आज जैनागम' के नाम से प्रसिद्ध है। जैन आगमिक माहित्य, जो अगोपागादि भेदो मे विभक्त है, उसका अन्तिम नम्कग्ण वलभी में वीरनिर्वाण ने ८० वर्ष के बाद और मतान्तर ने 86 वर्ष के बाद हुआ । यही मकरण आज उपलब्ध है। इसका मतलव यह नहीं है कि आगमो में जो कुछ बातें है वे प्राचीन समय की नहीं है। यत्र-नत्र थोडा-बहुत परिवर्तन और परिवर्धन 'आवश्यक नियुक्ति गाथा "तवनियमनाणरक्त पात्ढो केवली अमियनाणी । तो मुयइ नाणवर्दिछ भवियजणविवोहणट्ठाए ॥"
SR No.010849
Book TitlePremi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremi Abhinandan Granth Samiti
PublisherPremi Abhinandan Granth Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size34 MB
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