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________________ जैन और वैष्यावों के पारस्परिक मेल-मिलाप का एक शासन-पत्र श्री वासुदेवशरण अग्रवाल इतिहास से सिद्ध है कि मौर्य सम्राट् उदार वेता महाराज अशोक ने सव सम्प्रदायो के बीच समन्वय और शान्ति की शिक्षा देने के लिए विशेष आज्ञाएँ जारी को थी, जो उनकी धर्म-लिपियो में आज तक उत्कीर्ण है । अशोक के भाव विविध धर्मों वाले इस विशाल देश के लिए प्रमृत के समान हितकर है। अशोक से लगभग सोलह शताब्दी वाद विजयनगर साम्राज्य के प्रतापी सम्राट् श्री बुक्कराय प्रथम ने जैन और वैष्णवो में पारस्परिक मेल और शान्ति की स्थापना के लिए १३६८ ई० (शक वर्ष १२६०) में एक लेख खुदवाया । यह लेख दक्षिण के श्रवण बेलगोल स्थान के सबसे विशाल मंदिर में, जिसका नाम 'भडारी वस्ती' है, खुदा हुआ है ।" लेख के प्रारम्भ में मगलाचरण का एक श्लोक है, जिसमें वैष्णवी के परम गुरु श्री रामानुजाचार्य की स्तुति हैं । लेख का सारांश यह है कि जैन धर्मानुयायी लोगो ने श्री बुक्कराय से वैष्णवो की ओर से होने वाले अत्याचार की शिकायत की। इस पर बुक्कराय ने जैन और वैष्णव दोनो सम्प्रदायो के प्रभावशाली व्यक्तियो को एकत्र किया और जैन भक्तो का हाथ वैष्णवी के हाथो में रखकर दोनो मे मेल कराया। साथ ही घोषणा की कि जैन श्रीर वैष्णव दोनो मत अभिन्न है श्रीर दोनो एक ही शरीर के अग है। पूरा लेख इस प्रकार है मूल कन्नड़ लेख स्वस्ति समस्त प्रशस्ति सहितम् ॥ पाषण्डसागरमहा वडवामुखाग्नि श्रीरङ्गराजचरणाम्बुजमूलदास । श्री विष्णुलोकमणिमण्टपमार्गदायी रामानुजो विजयते यतिराजराज ॥ शक वर्ष १२६० ने कोलक सवत्सरद भाद्रपदशु १० बृ स्वस्ति श्रीमन्महामण्डलेश्वर आरिराय विभाड भाषेगे तनु रायगड श्रीवीर बुक्करायन पृथ्वी राज्यव माडव काल दल्लि जैनरिगू भक्तरिगू सवाजव श्रदल्लि श्रानेयगोन्दि होसपट्टा पेनुगुण्डे कल्ले हदपट्टणव प्रोलगाद समस्तनाड भव्य जनङ्गल प्रा बुक्कराय भक्तरु माडुव अन्यायगलतू बिनह माडल आगि कोविल तिरुमले पेरुमाल कोविल तिरुनारायणपुरमुख्यवाद सकलप्राचार्य्यरू सकलसमयिगलू लसाविक मोण्टकर तिरुवणि तिरुविडि तनीरवर नात्वत्तेष्टुजनङ्गलु सावन्तबोवक्कलु तिरिकूल जाम्बुव कूल पोलाद हदिने नाड श्रीवैष्णवर कैय्यलु महारायनु वैष्णप्रदर्शनऊ जैनदर्शनक्केऊ भेदव इल्लव एन्दु रायनु वैष्णवर कैम्यलु जैनर कैविडिवु कोट्टु यी जैनदर्शनक्के मरियादेयलु पञ्चमहावाद्यगलू कलशवु सलुबुद जैनदर्शनक्के नक्र देसेन्दिहा निवृद्धिवादरू वैष्णवहानि वृद्धिपरागि पालिसुवरुयी मर्यादेयलु यल्ला राज्यदोलग उल्लान्तह बस्तिगलिगे श्रीवैष्णव शासनव नट्टु पालिसुवरु चन्द्रावर्क स्थायियानि वैष्णव समयो जैनदर्शनव रक्षिसिकोण्डु वहेउ वैणरू जैन वोन्दु भेदवागि कागज श्रागड श्रीतिरुमलेय तातय्यगलु समस्तराज्यद भव्यजनङ्गल अनुमतदिन्द बेलुगुलद तिर्त्यदल्लि वैष्णव अङ्ग रक्षेगोसुक समस्तराज्यदोलग उल्लन्तह जैनर नागिलु गट्टलेयागि मने मनेगे वर्ष के 'देखिए एपिग्राकिया कर्नाटिका, भाग २, पृ० २६ ( भडारी बस्ती मंदिर का वर्णन ), पृ० ६३ ( लेख का मग्रेजी में साराश), पु० १५६ (मूल कन्नड भाषा का लेख, सख्या ३४४), पृ० १४६ ( लेख का अग्रेजी अनुवाद) ।
SR No.010849
Book TitlePremi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremi Abhinandan Granth Samiti
PublisherPremi Abhinandan Granth Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size34 MB
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