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________________ महाराज मानसिंह और 'मान-कौतूहल २८६ चौथे अध्याय मे लिखा है कि शरीर के किस भाग में से कौनसा स्वर उत्पन्न होता है और 'ध्रुवपद', 'विष्णुपद', 'ख्याल', 'माहरा' आदि के रूपो का भी वर्णन है। उनके रसो का भी विवेचन किया गया है। पांचवे अध्याय मे वाद्यो का उल्लेख है । तार, ताँत या खाल के योग मे बने बाजो के अतिरिक्त जलतरग का भी विस्तृत वर्णन है। इसके पश्चात् नायिका-भेद दिया गया है। छठे अध्याय में गायको के ऐवो का चित्रण है। सातवे अध्याय में गायको का गला आदि कैसा हो, इस पर प्रकाश डाला गया है। पाठवे अध्याय मे गायन के 'उस्ताद' की पहिचानें वतलाई गई है। भरत मत के अनुसार उस्ताद को सस्कृत का पडित होना चाहिए। कोष पर उसका अधिकार हो, शास्त्री हो, बुद्धि ऐसी कुशाग्न हो कि दूसरो से विवाद कर मके और नवीन चीजें पैदा कर सके। नवे अध्याय मे वतलाया है कि गान-मडली किम प्रकार सयोजित की जाये । गान-मडली के तीन प्रकार बतलाये है, उत्तम, मध्यम और निकृष्ट । उत्तम गान-मडली वह है, जिसमे चार गायक उच्च श्रेणी के, आठ मध्यम श्रेणी के, बारह सुकठ स्त्रियां, चार वांसुरी वाले और चार मृदग वाले हो। मध्यम सगोन-मडली में इसकी आधी सख्या रह जाती है । निकृष्ट मे एक गायक, तीन उसके सहायक, चार सुकठ स्त्रियाँ, दो वांसुरी वाले तथा दो मृदग वजाने वाले हो। इम अध्याय मे यह भी लिखा है कि सम्राट अकवर के काल में 'रागमागर' नामक एक पुस्तक निखी गई थी। उममे अनेक राग ‘मानकौतूहल' के विरुद्ध लिखे गये और वे गलत है।। दमवे अध्याय में अनुवादक के समय के प्रसिद्ध गायको का उल्लेख है । शेख वहीउद्दीन, सुलतान हुसैन शर्की, डालू ढाडी, लालखां उर्फ समन्दरखाँ (जिसे तानमैन के पुत्र विलासखां को लडको व्याही थी), जगन्नाथ, मिश्रीखां ढाडी, किशनसेन, तुलसीराम कलावन्त, भगवाना अन्धा आदि का हाल लिखा है । अन्त में कुछ आपवीती भो लिखी है। अनुवादक ने लिखा है कि सन् १०७१ मे सम्राट् किमी कारण से मुझसे अप्रसन्न हो गये और मैने 'गोशानशोनो' अस्तियार कर ली। मन् १०७६ मे मुझे पुन बुलाया गया और सम्राट् अपने साथ काश्मीर ले गये। यदि पृथ्वी पर स्वर्ग हो सकता है तो काश्मीर ही है। सम्राट् ने मुझे काश्मीर की मूवेदारी प्रदान की। शासन वास्तव मे भक्ति काही दूसरा नाम है और भक्ति का कोई दूसरा प्रकार इसको नही पहुँचता, क्योकि शासन जनता की सच्ची सेवा का नाम है। अनुवादक ने आगे लिखा है कि मुझे दो लडाइयां भी लडनी पडी। फिर रागो की फारसी नज़मो से तुलना करके समानता स्थापना का प्रयत्न है। ___इस पुस्तक से मध्यकालीन भारतीय सगीत के इतिहास पर पर्याप्त प्रकाश पडता है और आगे खोज के लिए सामग्री का मकेत भी मिलता है। इसमे हम प्रदेश के सास्कृतिक इतिहास पर भी प्रकाश पडेगा, इस आशा से यह सक्षिप्त परिचय प्रस्तुत किया गया है। ग्वालियर ]
SR No.010849
Book TitlePremi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremi Abhinandan Granth Samiti
PublisherPremi Abhinandan Granth Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size34 MB
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