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________________ जैन ग्रंथों में भौगोलि सामग्री और भारतवर्ष में जैन-धर्म प्रसार श्री जगदीशचन्द्र जैन एम० ए०, पी-एच० डी० यह बताने की आवश्यकता नही कि भारतीय पुरातत्त्व की खोज में जैन-ग्रन्थो का, विशेषकर जैन- श्रागमो और उन पर लिखी हुई टीका-टिप्पणियो का कितना महत्त्वपूर्ण स्थान है, यद्यपि सबसे कम अध्ययन शायद इन्ही ग्रन्थो का हुआ है । इन ग्रन्थो में पुरातत्त्व सम्वन्धी, ऐतिहासिक, भौगोलिक तथा सामाजिक विपुल सामग्री भरी पडी है, जिससे भारत के प्राचीन इतिहास की अनेक गुत्थियाँ सुलझती है । प्रस्तुत लेख में हम इन ग्रन्थो की भौगोलिक सामग्री के विषय में चर्चा करेंगे । प्राचीन भारत में इतिहास की तरह भूगोल भी एक बडी जटिल समस्या रही है। मालूम होता है कि यह समस्या पूर्व समय में काफी जटिलता धारण कर चुकी थी और यही कारण है कि जव भूगोल- विषयक शकाओ का यथोचित समाधान न हुआ तो अध्यात्म-शास्त्र की तरह भूगोल-शास्त्र भी धर्म का एक अग वन गया और एतद्विषयक ऊहापोह वन्द कर भूगोल को सदा के लिए एक कोठरी में वन्द कर दिया गया । फल यह हुआ कि भूगोल विषयक ज्ञान अधूरा रह गया और उसका विकास न हो सका । यह बात केवल जैन- शास्त्रकारों के विषय में ही नही, वल्कि वौद्ध और ब्राह्मण-शास्त्रकारो के लिए भी लागू होती है । जैन-मान्यता के अनुसार मध्य-लोक अनेक द्वीप और समुद्रो से परिपूर्ण है। सबसे पहला जम्बूद्वीप हैं, जो हिमवन्, महाहिमवन्, निषेध, नील, रुक्मि और शिखरिन्, इन छ पर्वतो के कारण भरत, हैमवत, हरि, विदेह, रम्यक, हरण्यवत और ऐरावतइन सात क्षेत्रो में विभाजित है । उक्त छ पर्वतो से गंगा - सिन्धु आदि चौदह नदियाँ निकलती हैं। जम्बूद्वीप को चारो ओर से घेरे हुए लवणसमुद्र है, तत्पश्चात् घातकीखड द्वीप, कालोदसमुद्र, पुष्करवर द्वीप आदि अनगिनत द्वीप और समुद्र है, जो एक दूसरे को वलय की तरह घेरे हुए है । सक्षेप में यही जैन पौराणिक भूगोल है । दुर्भाग्य से इस पौराणिक भूगोल का उस समय क्या आधार रहा होगा, यह जानने के हमारे पास इस समय कोई साधन नही है । परन्तु छानवीन करने पर इतना अवश्य मालूम होता है कि जिस भूगोल को हम पौराणिक अथवा काल्पनिक कहते हैं, वह सर्वथा काल्पनिक नही कहा जा सकता। उदाहरण के लिए जैन-भूगोल की नील पर्वत से निकल कर पूर्व समुद्र में गिरने वाली सीता नदी को लीजिए। चीनी लोग इस नदी को सितो ( S1-to) कहते है, यद्यपि यह किसी समुद्र में नही मिलती तथा काशगर की रेती में जाकर विलुप्त हो जाती है । बहुत सम्भव है कि ये दोनो नदियाँ एक हो । वौद्ध ग्रन्थो के अनुसार भारतवर्ष का ही दूसरा नाम जम्बूद्वीप है । इसी तरह वर्तमान हिमालय का दूसरा नाम हिमवत है जिसका उल्लेख पालि-ग्रन्थो में भी मिलता है । निषघ पर्वत की पहचान हिन्दुकुश से की जाती है तथा पूर्व विदेह, जिसे ब्रह्माण्ड पुराण में भद्राश्व के नाम से कहा गया है, पूर्वीय तुर्किस्तान और उत्तर चीन का हिस्सा माना जाता है ।" नायाघम्मकथा के उल्लेखो से मालूम होता है कि हिन्दमहासागर का ही दूसरा नाम लवणसमुद्र था । तथा कुछ विद्वानो के अनुसार मध्य एशिया के एक हिस्से का नाम पुष्करद्वीप था । * ' ज्यॉग्रेफिकल डिक्शनरी, नन्दलाल डे, पृ० १४१ 'स्टडीज इन इन्डियन ऐन्टिक्विटीज, रायचौधुरी, पू० ७५-६ देखिए श्रध्याय ८, ६ और १७ 'ज्यॉप्रेफिकल डिक्शनरी, पृ० १६३
SR No.010849
Book TitlePremi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremi Abhinandan Granth Samiti
PublisherPremi Abhinandan Granth Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size34 MB
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