SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 255
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २२८ प्रेमी-अभिनंदन-प्रय प्राचीनता की ओर लौटने की पुकार थी-बीच के अंधेरे युग को चीरते हुए प्राचीनता के स्वप्नो को आत्मसात् कर लेने की ललक। मुस्लिम समाज मे भी इसी प्रकार की प्रवृत्ति जोर पर थी। इस्लाम में भी एक विभिन्न वातावरण के प्रभाव और एक विभिन्न नेतृत्व में इसी प्रकार के प्रतिक्रियावादी आन्दोलन उठ खडे हुए। इसका प्राधार भी प्राचीन की ओर लौटने-कुरान, पैगम्बर और हदीस को स्वीकार करने पर था। इन 'कुरान की ओर लोटो' आन्दोलनो में, दिल्ली के शाह अब्दुल अजीज ने इस्लाम को उन अधविश्वासो और रूढियो से मुक्त करने का प्रयत्न किया जो उसने हिन्दू-समाज मे ली थी और प्राचीन इस्लाम के उन सिद्धान्तो का प्रचार करने की चेष्टा की जो पैगम्बर द्वारा निर्धारित किए गए थे। वरेली के सैयद अहमद ने हिन्दुस्तान को 'दारुल हर्व' करार दिया, जहां कि मुसलमानो को 'जिहाद' (पृथक धर्म-युद्ध) करते रहना आवश्यक था। इस प्रवृत्ति का नाम, 'तरीकए मोहम्मदिया' अथवा मुहम्मद के तरीके की ओर लोटना था। जौनपुर के शाह करामत अली इतने उग्र विचारो के नहीं थे, पर उन्होने भी प्रसस्य मुसलमानो को शुद्ध इस्लामी जीवन की ओर लौटने में बडी सहायता पहुंचाई। फरीदपुर के, हाजी गरीयतुल्ला ने फरदी-आन्दोलन को जन्म दिया, जो अर्द्ध-धार्मिक और अर्द्ध राजनैतिक था। उनके पुत्र दूधू मियाँ के नेतृत्व में यह आन्दोलन बहुत प्रवल हो गया था। अहले हदीस और मिर्जा गुलाम अहमद कादियानी के अनुयायियो में भी यही प्रवृत्ति काम कर रही थी। प्राचीन के पुननिर्माण की यह प्रवृत्ति प्रत्येक देश के नवयुग का एक मुस्य अग है। यूरुप में भी पन्द्रहवी शताब्दी में नए जीवन की जिस चेतना ने अपनी उत्ताल तरगो के प्रबल प्राघातो से मध्य-काल के ध्वस-चिन्हो को नष्ट-भ्रष्ट कर डाला उमके पीछे भी ईसा के पहिले की यूनानी सभ्यता के जीर्णोद्धार का प्रयत्न काम कर रहा था। हिन्दुस्तान में भी इस प्रवृत्ति की उपस्थिति स्वाभाविक ही थी। जव कोई राष्ट्र निराशा के गढे में गिराहोता है, जब वर्तमान से उसका विश्वास उठ गया होता है तव प्राचीन महानता की स्मृति ही उसे भविष्य की नई आशागो और नए स्वप्नो को जानत करने में सहायक होती है। यह सच है कि ऐसी स्थिति मे कल्पना कभी-कभी इतनी प्रवल हो जाती है कि ऐतिहासिक सत्य उसकेतूफानी सत्य परनि सहाय-सा डूबने उतराने लगता है। दूर के तो बादल भी सुहावने लगते है, विशेषकर उस समय जव उसके पीछे से डूबते हुए सूरज की किरणे फूट निकलती है। हिन्दू और मुसलमान दोनो समाजो के लिए तोप्राचीन मे विश्वास रखने का यथेष्ट कारण भी था। इस प्रवृत्ति का परिणाम यह हुआ कि हमारे देश में हिन्दू और मुसलमान दोनो समाजो पर नवयुग की चेतना का प्रभाव दो विभिन्न रूपो में पडा। हिन्दुप्रोकी दृष्टि उम प्राचीन संस्कृति पर पडी जिसका विकास गगा और जमुना के किनारे,आर्य-ऋषियो द्वारा उन शताब्दियो में हुआ था जव भारतवर्षमुस्लिम सपर्क से विल्कुल अछूता था। दूसरी ओर मुसलमानो की दृष्टि उनकी अपनी प्राचीन सभ्यता की ओर गई, जिसका विकास अरव के मरुस्थल में, पैगम्बर और उनके साथी खलीफाओद्वारा हुअा था,और जो अपनी चरम सीमा का स्पर्श, और उसे पार कर चुकी थी, हिन्दुस्तान के सपर्क मे आने के शताब्दियो पहिले । वेदोनो भूल गए-जैसे किसी दूर की वस्तु को देखने को तल्लीनता और तन्मयता में कभी-कभी पास की वस्तु को भूल जाते है-कि उन दोनो ने इस देश के सैकडो वर्षों के सामान्य जीवन में और साथ में प्राप्त किए गए सुख और दुख के सहस्र-सहस्र अनुभवो मे एक महान् सामान्य सभ्यता का निर्माण किया था, सामान्य सामाजिक सस्थाओ और धर्म-सिद्धान्तो और कला और साहित्य की सामान्य पृष्ठ-भूमि पर जिसके लिए वे दोनो उतनाही गौरव अनुभव कर सकते थे, जितना किसी अन्य सभ्यता के सम्बन्ध में। मेरठ]
SR No.010849
Book TitlePremi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremi Abhinandan Granth Samiti
PublisherPremi Abhinandan Granth Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size34 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy