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________________ २२४ प्रेमी-अभिनदन-प्रय धार्मिक सहिष्णुता की इस नीति का ही यह परिणाम था कि मुस्लिम-शासन इस देन मे इतना अधिक लोकप्रिय होगया कि मुगल साम्राज्य के पतन के डेढ सौवरत के वाद भी, १८५७ के गदर में, मुगल-वग के ही किसी उत्तराधिकारी को समस्त देश का भासक बनाने का प्रयत्न किया गया। वीच में भी लगातार इस प्रकार के प्रयत्न चलते रहे। उत्तर भारत में १७७२ से १७९४ तक महादाजी सिन्धिया का आधिपत्य रहा, पर अपने शासन के लिए नैतिक बल प्राप्त कराने की दृष्टि ने उसके लिए यह आवश्यक हुया कि वह मुग़ल-वग के माह आलम को अग्रेजो की कैद से छडा कर दिल्ली की गद्दी परविठाए और जवगुलाम कादिर के द्वारा गाह पालम की प्रांखें फोड दी गई तव भी तो महादाजी उने शाहगाहे आलम मानता न्हा । सच तो यह है कि हिन्दू और मुसलमानो के नौ सौ वर्षों के नम्पर्क मे यद्यपि राजनैतिक क्षेत्र में काफी सघर्ष रहा, पर उस सघर्ष ने कभी, धार्मिक अथवा नास्कृतिक सावार लेकर, साम्प्रदायिक सघर्ष का रूप नहीं लिया। चौदहवी और पन्द्रहवी शताब्दियो मे मध्य-भारत में, गुजरात, मेवाड और मालवा में लगातार सघर्ष रहा, पर इनमे गुजरात के सुल्तान प्राय उतनी ही वार मेवाड के राणा के पक्ष मे, और मालवा के सुल्तान के खिलाफ लडे, जितनी बार वह मालवा के सुल्तान के पक्ष मे, मेवाड के राणा के जिलाफ, लडे । वावर और हुमायू ने, पठानो के खिलाफ, राजपूतो का साथ दिया। मुग़ल-माम्राज्य के पतन के बाद भी निजाम मराग-नानाज्य के अन्तर्गत था, न कि मैसूर के सुल्तान के साथ और राजपूतो की सहानुभूति मराठो के नाप कम और रुहेलो के साथ ज्यादा रही। यह एक ऐतिहानिक नत्य है कि बीसवीं शताब्दी के पहले हिन्दू और मुनलमान कभी एक दूसरे के खिलाफ धार्मिक अथवा साम्प्रदायिक मतभेद के आधार पर नहीं लडे थे। सास्कृतिक समन्वय राजनैतिक एकता का सहारा लेकर सास्कृतिक समन्वय की स्थापना हुई। इस प्रवृत्ति का प्रारम्भ तो एक सामान्य भाषा की उत्पत्ति के साथ ही हो चुका था। हिन्दी ब्रजभाषा और फारसी के सम्मिश्रण का परिणाम थी। उसका शब्दकोष, वाक्य-विन्यास, व्याकरण, सभी दोनो भाषायो की सामान्य देन है। हिन्दू और मुसलमान दोनो ने इस भाषा को धनी बनाया। अमीर खुसरो हिन्दी भी उतनीही धाराप्रवाह लिखनकताथा जितना फारसी। अकवर ने उसे प्रोत्साहन दिया। खानखाना, रसखान और जायसी, हिन्दी साहित्य के गौरव है। जायनी तो मध्य-कालीन हिदी के तीन सर्वश्रेष्ठ लेखको में है और हृदय की सूक्ष्मतम भावनाओ की अभिव्यक्ति में कई स्थलो पर तुलती और नूर से भी वाजी मार ले गये हैं। अन्य प्रान्तीय भाषाओ, मराठी, बंगला, गुजराती, सिन्धी आदि पर भी मुसलमानो का प्रभाव उतना ही पूर्ण पडा । मराठी तो वहमनी-वश के सरक्षण में ही माहित्यिकता की सतह तक उठ सकी। बंगला का विकास भी मुस्लिम-गासन की स्थापना के परिणामस्वरूप ही हुआ। दिनेशचन्द्र सेन का मत है कि “यदि हिन्दू मामक स्वाधीन बने रहते तो (सस्कृत के प्रति उनका अधिक ध्यान होने के कारण) बंगला को गाही दरवार तक पहुंचने का मौका कभी नहीं मिलता।" सास्कृतिक समन्वय की यह प्रवृत्ति वास्तुकला और चित्र-कला के क्षेत्रो में अपनी चरम-सीमा तक पहुंची है। मुस्लिम वान्नुकला का सर्वोच्च विकास इसी देश में हुआ। काहिरा की मस्जिदो में भी फैज़ पाशा के शब्दो में “कला की सम्पूर्ण मनोरमता नहीं है । सामंजस्य, अभिव्यक्ति, सजावट, सभी मे एक ऐसी अपूर्णता है, जो अधिकाश उत्तरी आलोचको का ध्यान वरवस अपनी ओर खीचती है।" ईरान की मुस्लिम कला में भी हम यही वात-भव्य मजावट और वैज्ञानिक कौशल का अभाव-पाते है। ताजमहल हिन्दुस्तान में मुस्लिम वास्तुकला का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है, परन्तु वह ससार की अन्य इस्लामी इमारतो से विलकुल भिन्न है। उसके निर्माण में हिन्दू शिल्प-शास्त्रो के सिद्धान्तो का अधिक पालन किया गया है। बीच मे एक वडा गुम्बद और उसके आसपास चार छोटे-छोटे गुम्बद देखकर पचरत्न की कल्पना का स्मरण हो आता है। गुम्वदो की जडो में कमल की खुली हुई पखडियां है जो मानो गुम्बद को धारण किये हुए हैं। शिखर के समीप कमल की उल्टी पखड़ियां है। शिखर के ऊपर त्रिशूल है। हैवल ने
SR No.010849
Book TitlePremi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremi Abhinandan Granth Samiti
PublisherPremi Abhinandan Granth Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size34 MB
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