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________________ हिंदुस्तान में छापेखाने का प्रारभ १७७ डॉ. केरी ने केवल वाइविल के अनुवादही प्रकाशित नहीं किये थे, बल्कि उसने भिन्न-भिन्न भाषाओं के व्याकरण कोश, लोक-कया आदि-अन्य भी हिन्दुस्तान के विद्वानो की सहायता से छापे थे। मीरामपुर प्रेम में वाइविल के मिवाय नीचे लिखी मराठी पुस्तकें भी मुद्रित हुई हैसन् पुस्तक का नाम १८०५ मराठी भाषा का व्याकरण १८०७ मगल ममाचार १८१० मराठी-इग्लिश कोश १८१४ सिंहासन बत्तीसी १८१५ हितोपदेश १८१८ राघोजी भोसले की वशावली प्रतापादित्य का चरित्र मारासगा पुलानचे पनपी पीननाशासाणं प्रपमराः प्राय • भानूपू मंगळाचनण पनीर यो मंगेचे प्रेणाचे प्रमाणे प्रभळा मादे प्रपाम , प्पो या मधपाने पानुग्रमने सामु मेम्न साथ. मर्म सोय घे/ पयनीम ग्रेगेसोपशव सरमरा गोरा पाणख । पाणी सर्पक गौधर पेयोना पाणी नोगा घ्या गो । • योपन मनप्प पावन प्यणी सामनाचे खासा भेजन - पीच्या पणो धन बोनामनो पणछीन यमाने शडी গদ্য ট যা সমাটা টন্ মাৰা মৰছু। प्पणो पापणे प्रमागणे पीध्या जनुभम प्रम में vडा र पो मा नीमोनान पीयेच खाणे सगर्योोगार्टन नोयरा पण साध्यास प्पणी पदाया यी पाणछन् पीच्या गन नीच । मनुष्याम घय रान साव् भनुप्पास् गुणाम्य नान्मार , हितोपदेश (१८१५) मराठी भाषा मे पुस्तके प्रकाशित कराने के काम में उसे नागपुर के वैजनाथ नामक पडित की पूरी सहायता मिली थी। __मराठी भाषा देवनागरी अक्षरों में ही लिखी जाती है । इसलिए इसमें ही मराठी पुस्तकें छपी थी, परन्तु महाराष्ट्र में लिखने के व्यवहार में अधिक प्रचलित 'मोडी' अक्षरो के टाइप भी उसने बनवाये। इसका कारण उमने स्वय बताया है - ०३
SR No.010849
Book TitlePremi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremi Abhinandan Granth Samiti
PublisherPremi Abhinandan Granth Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size34 MB
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