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________________ १७४ प्रेमी-अभिनंदन-प्रय वह टाइप खराव हो गया और वह इस टाइप मे यहां कोई पुस्तक न छाप सका। परन्तु वह 'पच' और मट्रिस' इग्लैंड ले गया। वहां उसने देवनागरी टाइप डाला और उससे उसने अपनी पुस्तक 'संस्कृत भाषा का व्याकरण'(AGrammar of the Sanskrit Language) सन् १८०८ मे लन्दन मे छापी। यह किताव ईस्ट इंडिया कॉलेज, हॉर्टफ़ोर्ड (The East India College at Hertford) के सचालको के उत्साह से प्रकाशित कराई गई थी। यहनैयार तो भारत मे ही कर ली गई थी, मगर यहां छप नही सकी। इस बात का उल्लेख उन्होने अपने व्यावरण की प्रस्तावना में किया है। जिन दो सहायको का मि० विल्किन्स ने अपनी प्रस्तावना मे निर्देश किया है वे पचानन और मनोहर थे। उन्हें टाइप बनाने की कता प्राप्त हुई थी। मगर उस कला का उपयोग वे स्वय करने में असमर्थ थे। उनको विल्किस के जैसे कित्ती नियोजक की आवश्यकता थी। सौभाग्य से उन्हें डा० विलियम केरी नाम का एक सद्गृहस्थ मिला। यदि उन्हें डा० केरी न मिला होता तो सम्भव था कि यह कला दोनो कारीगरो के मार ही चली जाती और कई वर्ष तक हिन्दुस्तान में मुद्रणकला का प्रचार न होता। डा० केरी मिशनरी था। वह सन् १७६३ मे हिन्दुस्तान आया । उनका मुख्य उद्देश्य भारत मे ईमाइयो के प्रसिद्ध धर्म गन्य शुभवर्तमान का प्रचार करना था। उसको सस्कृत, वगाली, मराठी इत्यादि देशी भाषाओ का अच्छा ज्ञान था। फोर्ट विलियम कॉलेज, कलकत्ता में भी वह देशी भाषाएँ सिखाने का प्रोफेसर नियुक्त हुआ। जिस समय वह इत्त विचार में था कि किसी तरह देशी भाषानो के टाइप ढाले जाये और उसमें वाइविल छापी जाय, उसी समय मे उसकी पचानन से मुलाकात हुई और नीरामपुर के छापेखाने का उद्योग शुरू हुआ। सन् १८०७ में प्रकाशित 'अनुवाद के सस्मरण' (A memoir relative to the translations) नामक पुस्तक में डॉ० केरी ने लिखा है The first Section of the Shree Bhagvatu, आँ नैमिले इनिसियनेने अधयः शतकादयः सत्रं हाय लोकाव सहस्तममासत तएकदा तु मुनथः प्राततिजलाययः । सकतं सूत मासोनं अनछुरिमादरात् .. Im. Shouauku, aan the other sages, im Nircishu, thic, डा० केरी के सस्कृत भाषा का व्याकरण हमने सीरामपुर में काम आरभ किया। उसके कुछ ही दिन बाद, भगवान् की दया से हम वह प्रादमी मिला जिसने मि० विल्किस के साथ टाइप बनाने का काम किया था और जो इस काम में होशियार था। उसकी मदद से हमने एक टाइप फाउडरी बनाई। यद्यपि वह अव मर गया है। परन्तु वह बहुत से दूसरे प्रादमियो को यह काम सिखा गया है और वे टाप बनाने का काम किये जा रहे है। इतना ही नहीं, वे मेट्रिसेज भी बनाते हैं। वे इतनी
SR No.010849
Book TitlePremi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremi Abhinandan Granth Samiti
PublisherPremi Abhinandan Granth Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size34 MB
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