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________________ १५८ प्रेमी-अभिनवन-ग्रंथ __वस्तु-वर्णन-कौशल में भी जायसी भाषा के किसी कवि से पीछे नही रहे। कही-कही तो उन्होने सस्कृत कवियो तक मे टक्कर ली है। इसके लिए उन्होने कई ऐसे स्थलो को चुना है, जिनका विस्तृत वर्णन बहुत ही भावपूर्ण हुआ है। सिंघलद्वीप वर्णन में जहाँ वाग-बगीची, नगर-हाट और सरोवरो का वर्णन है, वही पशुपक्षियो की चर्चा भी छूटने नहीं पाई है। सिंघलद्वीप-यात्रा-वर्णन में कवि ने अतिशयोक्तियो से बहुत काम लिया है और समुद्रवर्णन में तो उन्होने पौराणिक कथाओ को वास्तविकता से अधिक महत्त्व दे दिया है। समुद्र के जीव-जन्तु प्राय काल्पनिक आधार पर ही रखे गये है, जिससे जान पडता है कि जायसी का इस विषय पर निज का कुछ भी अनुभव नहीं था। इसी प्रकार विवाहवर्णन, युद्धवर्णन, षट्ऋतुवर्णन तथा रूपमौन्दर्यवर्णन में कवि ने काफी ऊंची उडान भरी है, लेकिन साथ-ही-साथ जहाँ कही भी पक्षियो का उल्लेख पाया है, उसने इसी बात का प्रयत्न किया है कि उनकी काल्पनिक कथाओ की अपेक्षा उनका वास्तविक वर्णन ही अधिक रहे । देहात में रह कर पक्षियो का सूक्ष्म निरीक्षण करने के कारण जायसी ने पक्षियो के साहित्यिक नामो की अपेक्षा उनके लोकप्रसिद्ध नामो को ही रखना उचित समझा है। वैसे तो हमारे साहित्य-उपवन में हस, पिक, चातक, शुक, सारिका, काक, कपोत, खजन, चकोर, चक्रवाक, वक, सारस, मयूर प्राय इन्ही थोडे से पक्षियो का वर्णन मिलता है, जिनका अलग-अलग काम हमारे साहित्यकारो ने वांट रक्खाहै। इनमें से कुछ नखशिख वर्णन में, कुछ विरहवर्णन मे और कुछ प्रकृतिवर्णन के सिलसिले में याद किये जाते हैं। कुछ के वास्तविक गुणो को छोड कर उनके बारे में ऐसी काल्पनिक कथाएं गढ ली गई है, जो सुन्दर होने पर भी वास्तविकता से कोसो दूर है। हस का मोती चुनना और नीरक्षीर को अलग कर देना, चकवा-चकई का रात्रिकाल में अलग हो जाना, चातक का स्वातिजल के सिवा कोई दूसरा पानी न पीना और चकोर का चन्द्रमा के धोखे में अगार खाने की कथा जहाँ कवियो ने कितनी ही बार दुहराई है वही पिक और चातक की मीठी वोली को विरहाग्नि प्रज्वलित करने वाली कहा है। शुक-सारिका जैसे पिंजडे मे वन्द रहने के लिए ही बनाये गये है। इनसे प्राय किस्से सुनाने का काम लिया गया है। कपोत से कठ की, शुक की चोच से नासिका की और खजन से नेत्रो की उपमा अक्सर दी जाती है। सारस का जोडा आजीवन अभिन्नता के पाश में बंधे रहने के लिए प्रयुक्त होता है। काक और वक प्राय तुलनात्मक वर्णन में इस्तेमाल होते है और मयूर को वर्षागमन की सूचना देने के लिए स्मरण किया जाता है। इन सब पक्षियो के अलावा हमारे कवियो ने अन्य पक्षियो की ओर या तो ध्यान ही नहीं दिया, या उन्हें इतना अवकाश ही नहीं था कि वे अपनी साहित्यवाटिका से बाहर निकल कर प्रकृति के विशाल नीलाकाश में दिन भर उड़ने वाली अन्य चिडियो की ओर भी दृष्टिपात करते । लेकिन जायसी दरबारी कवि न होकर जनता के कवि थे। उनका दृष्टिकोण उन राजसभा के कवियो से भिन्न था, जो हस को विना देखे ही उसके वर्णन में नहीं हिचकते । जायसी ने पक्षियो का स्वय भलीभांति निरीक्षण करके उनका स्वाभाविक और सजीव वर्णन किया है। जायसी के 'पद्मावत' में लगभग साठ पक्षियो के नाम पाते है, जो हमारे आसपास रहने वाले परिचित पक्षी है। 'पद्मावत' में वैसे तो अनेको स्थानों पर चिडियो का वर्णन आया है, लेकिन कई स्थल ऐसे है जहाँ जायसी को तरह-तरह के पक्षियो को एकत्र करने का अवसर मिला है। पहला स्थल तो सिंघलद्वीप वर्णन के अन्तर्गत है। सिंघलद्वीप मे जहाँ अनेको प्रकार के वृक्ष मौजूद है, भला पक्षियो की कमी कैसे रहती। तभी तो वसहि पखि बोलाह बहु भाखा, करहिं हुलास देखि के साखा। भोर होत बोलहिं चुहचूही', बोलहिं पाडुक' "एक तू हो"। 'चुहचुही भुजगा पक्षी। . 'पाड़कपडकी, फ्रानता।' -
SR No.010849
Book TitlePremi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremi Abhinandan Granth Samiti
PublisherPremi Abhinandan Granth Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size34 MB
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